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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक साधुओं की, दो हजार अवधिज्ञानी, बत्तीस सौ केवलज्ञानी, पैंतीस सौ वैक्रियलब्धिधारों, आठ सौ मनःपर्यवज्ञानी, चौदह सौ वादी और बीस सौ अनुत्तरौपपातिक साधुओं की सम्पदा थी।
मल्ली अरहंत के तीर्थ में दो प्रकार की अन्तकर भूमि हुई । युगान्तकर भूमि और पर्यायान्तकर भूमि । इनमें से शिष्य-प्रशिष्य आदि बीस पुरुषों रूप युगों तक युगान्तकर भूमि हुई, और दो वर्ष का पर्याय होने पर पर्यायान्त-कर भूमि हुई । मल्ली अरहंत पच्चीस धनुष ऊंचे थे । उनके शरीर का वर्ण प्रियंगु के समान था । समचतुरस्र संस्थान और वज्रऋषभनाराच संहनन था । वह मध्यदेश में सुखे-सुखे विचरकर जहाँ सम्मेद पर्वत था, वहाँ आकर उन्होंने सम्मेदशैल के शिखर पर पादोपगमन अनशन अंगीकार कर लिया । मल्ली अरहंत एक सौ वर्ष गृहवास में रहे । सौ वर्ष कम पचपन हजार वर्ष केवली-पर्याय पालकर, कुल पचपन हजार वर्ष की आयु भोगकर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास, दूसरे पक्ष चैत्र मास के शुक्लपक्ष की चौथ तिथि में, भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर, अर्द्धरात्रि के समय, आभ्यन्तर परीषद की पाँच सौ साध्वीयों और बाहा परीषद के पाँच सौ साधओं के साथ, निर्जल एक मास के अनशनपूर्वक दोनों हाथ लम्बे रखकर, वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र इन चार कर्मों के क्षीण होने पर सिद्ध हए । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णित निर्वाण महोत्सव कहना । फिर देवों नन्दीश्वरद्वीप में जाकर अष्टाह्निक महोत्सव करके वापस लौटे ।
इस प्रकार ही, हे जम्बू ! श्रमण भगवान महावीर ने आठवे ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्ररूपण किया है। मैंने जो सूना, वही कहता हूँ।
अध्ययन-८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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