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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक तत्पश्चात् लौकान्तिक देवों द्वारा सम्बोधित मल्ली अरहंत माता-पिता के पास आए । आकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके कहा-'हे माता-पिता ! आपकी आज्ञा प्राप्त करके मुण्डित होकर गृहत्याग करके अनगार-प्रव्रज्या ग्रहण करने की मेरी ईच्छा है । तब माता-पिता ने कहा-'हे देवानुप्रिये ! जैसे सुख उपजे वैसा करो । प्रतिबन्ध-विलम्ब मत करो । तत्पश्चात् कुम्भ राजा न कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया । बुलाकर कहा'शीघ्र ही एक हजार आठ सुवर्णकलश यावत् एक हजार आठ मिट्टी के कलश लाओ। उसके अतिरिक्त महान् अर्थ वाली यावत् तीर्थंकर के अभिषेक की सब सामग्री उपस्थित करो ।' यह सूनकर कौटुम्बिक पुरुषों ने वैसा ही किया, अर्थात् अभिषेक की समस्त सामग्री तैयार कर दी।
उस काल और उस समय चामर नामक असुरेन्द्र से लेकर अच्युत स्वर्ग तक के सभी इन्द्र आ पहुँचे । तब देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाकर इस प्रकार कहा- 'शीघ्र ही एक हजार आठ स्वर्णकलश आदि यावत दूसरी अभिषेक के योग्य सामग्री उपस्थित करो ।' यह सुनकर आभियोगिक देवों ने भी सब सामग्री उपस्थित की । वे देवों के कलश उन्हीं मनुष्य गों के कलशों में समा गए । तत्पश्चात देवेन्द्र देवराज शक्र और कुम्भ राजा ने मल्ली अरहंत को सिंहासन के ऊपर पूर्वाभिमुख आसीन किया । फिर सुवर्ण आदि के एक हजार आठ पूर्वोक्त कलशों से यावत् उनका अभिषेक किया।
तत्पश्चात् जब मल्ली भगवान् का अभिषेक हो रहा था, उस समय कोई-कोई देव मिथिला नगरी के भीतर और बाहर यावत् सब दिशाओं-विदिशाओं में दौड़ने लगे इधर-उधर फिरने लगे । तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने दूसरी बार उत्तर दिशा में सिंहासन रखवाया यावत् भगवान् मल्ली को सर्व अलंकारों से विभूषित किया । कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर इस प्रकार कहा-' शीघ्र ही मनोरमा नामकी शिबिका लाओ।' कौटुम्बिक पुरुष मनोरमा शिबिका ले आए । तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाया । बुलाकर उनसे कहा-शीघ्र ही अनेक खम्भों वाली यावत मनोरमा नामक शिबिका उपस्थित करो । तब वे देव भी मनोरमा शिबिका लाये और वह शिबिका भी उसी मनुष्यों की शिबिका में समा गई।
तत्पश्चात् मल्ली अरहंत सिंहासन से उठे । जहाँ मनोरमा शिबिका थी, उधर आकर मनोरमा शिबिका की प्रदक्षिणा करके मनोरमा शिबिका पर आरूढ़ हुए । पूर्व दिशा की ओर मुख करके सिंहासन पर बिराजमान हुए। कुम्भ राजा ने अठारह जातियों-उपजातियों को बुलवाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! तुम लोग स्नान करके यावत् सर्व अलंकारों से विभूषित होकर मल्ली कुमारी की शिबिका वहन करो ।' यावत् उन्होंने शिबिका वहन की । शक्र देवेन्द्र देवराज ने मनोरमा शिबिका की दक्षिण तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, ईशान इन्द्र ने उत्तर तरफ की ऊपरी बाहा ग्रहण की, चमरेन्द्र ने दक्षिण तरफ की और बली ने उत्तर तरफ की नीचली बाहा ग्रहण की । शेष देवों ने यथायोग्य उस मनोरमा शिबिका को वहन किया। सूत्र-१०४
मनुष्यों ने सर्वप्रथम वह शिबिका उठाई । उनके रोमकूप हर्ष के कारण विकस्वर हो रहे थे । उसके बाद असुरेन्द्रों, सुरेन्द्रों और नागेन्द्रों ने उसे वहन किया। सूत्र - १०५
चलायमान चपल कुण्डलों को धारण करनेवाले तथा अपनी ईच्छा अनुसार विक्रिया से बनाये हुए आभरणों को धारण करने वाले देवेन्द्रों और दानवेन्द्रों ने जिनेन्द्र देव की शिबिका वहन की। सूत्र-१०६, १०७
तत्पश्चात् मल्ली अरहंत जब मनोरमा शिबिका पर आरूढ़ हुए, उस समय उनके आगे आठ-आठ मंगल अनक्रम से चले । जमालि के निर्गमन की तरह यहाँ मल्ली अरहंत का वर्णन समझ लेना । तत्पश्चात मल्ली अरहंत जब दीक्षा धारण करने के लिए नीकले तो किन्हीं-किन्हीं देवों ने मिथिला राजधानी में पानी सींच दिया, उसे साफ कर दिया और भीतर तथा बाहर की विधि करके यावत् चारों ओर दौड़धूप करने लगे । तत्पश्चात् मल्ली अरहंत
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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