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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक से, अर्थ से और प्रयोग से सिद्ध कराता है तथा सिखलाता है। माता-पिता के पास वापिस ले जाता है । तब मेघकुमार के माता-पिता ने कलाचार्य का मधुर वचनों से तथा विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकारों से सत्कार दिया, सन्मान किया । जीविका के योग्य विपुल प्रीतिदान दिया। प्रीतिदान देकर उसे बिदा किया । सूत्र - २७
तब मेघकुमार बहत्तर कलाओं में पंडित हो गया । उसके नौ अंग-जागृत से हो गए । अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में कुशल हो गया । वह गीति में प्रीति वाला, गीत और नृत्य में कुशल हो गया । वह अश्वयुद्ध रथयुद्ध
और बाहुयुद्ध करने वाला बन गया । अपनी बाहुओं से विपक्षी का मर्दन करने में समर्थ हो गया । भोग भोगने का सामर्थ्य उसमें आ गया । साहसी होने के कारण विकालचारी बन गया।
तत्पश्चात् मेघकुमारके माता-पिता ने मेघकुमार को बहत्तर कलाओं में पंडित यावत् विकालचारी हुआ देखा। देखकर आठ उत्तम प्रासाद बनवाए । वे प्रासाद बहुत ऊंचे थे । अपनी उज्ज्वल कान्ति के समूह से हँसते हुए से प्रतीत होते थे । मणि, सुवर्ण और रत्नों की रचना से विचित्र थे । वायु से फहराती हुई और विजय को सूचित करने वाली वैजयन्ती पताकाओं से तथा छत्रातिछत्र युक्त थे । वे इतने ऊंचे थे कि उनके शिखर आकाशतल का उल्लंघन करते थे। उनकी जालियों के मध्य में रत्नों के पंजर ऐसे प्रतीत होते थे, मानों उनके नेत्र हों । उनमें मणियों और कनक की भूमिकाएं थीं। उनमें साक्षात् अथवा चित्रित किये हुए शनपत्र और पुण्डरीक कमल विकसित हो रहे थे । वे तिलक रत्नों एवं अर्द्ध चन्द्रों - एक प्रकार के सोपानों से युक्त थे, अथवा भित्तियों में चन्दन
आदि के आलेख चर्चित थे । नाना प्रकार की मणिमय मालाओं से अलंकृत थे। भीतर और बाहर से चीकने थे। उनके आँगन में सुवर्णमय रुचिर बालुका बिछी थी । उनका स्पर्श सुखप्रद था । रूप बड़ा ही शोभन था । उन्हें देखते ही चित्त में प्रसन्नता होती थी। तावत प्रतिरूप थे-अत्यन्त मनोहर थे।
___और एक महान भवन बनवाया गया । वह अनेक सैकड़ों स्तम्भो पर बना हुआ था । उसमें लीलायुक्त अनेक पूतलियाँ स्थापित की हुई थीं। उसमें ऊंची और सुनिर्मित वज्ररत्न की वेदिका थी और तोरण थे । मनोहर निर्मित पुतलियों सहित उत्तम, मोटे एवं प्रशस्त वैडूर्य रत्न के स्तम्भ थे, वे विविध प्रकार के मणियों, सुवर्ण तथा रत्नों से खचित होने के कारण उज्ज्वल दिखाई देते थे । उनका भूमिभाग बिलकुल सम, विशाल, पक्व और रमणीय था । उस भवन में ईहामृग, वृषभ, तुरग, मनुष्य, मकर आदि के चित्र चित्रित किए हुए थे । स्तम्भों पर बनी वज्ररत्न की वेदिका से युक्त होने के कारण रमणीय दिखाई पड़ता था । समान श्रेणी में स्थित विद्याधरों के युगल यंत्र द्वारा चलते दीख पड़ते थे । वह भवन हजारों किरणों से व्याप्त और हजारों चित्रों से युक्त होने से देदीप्यमान
और अतीव देदीप्यमान था । उसे देखते ही दर्शक के नयन उसमें चिपक-से जाते थे । उसके स्पर्श सुखप्रद था और रूप शोभासम्पन्न था । उसमें सुवर्ण, मणि एवं रत्नों की स्तूपिकाएं बनी हुई थी । उसका प्रधान शिखर नाना प्रकार की, पाँच वर्णों की एवं घंटाओं सहित पताकाओं से सुशोभित था । वह चहुँ और देदीप्यमान किरणों के समूह को फैला रहा था । वह लिपा था, धुला था और चंदेवा से युक्त था । यावत् वह भवन गंध की वर्ती जैसा जान पड़ता था। वह चित्त को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था-अतीव मनोहर था। सूत्र - २८
तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने मेघकुमार का शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में शरीरपरिमाण से सदृश, समान उम्र वाली, समान त्वचा वाली, समान लावण्य वाली, समान रूप वाली, समान यौवन और गुणों वाली तथा अपने कुल के समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ, एक ही दिन-एक ही साथ, आठों अंगों में अलंकार धारण करने वाली सुहागिन स्त्रियों द्वारा किये मंगलगान एवं दधि अक्षत आदि मांगलिक पदार्थों के प्रयोग द्वारा पाणिग्रहण करवाया । मेघकुमार के माता-पिता ने इस प्रकार प्रीतिदान दिया-आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ सुवर्ण, आदि गाथाओं के अनुसार समझ लेना, यावत् आठ-आठ प्रेक्षणकारिणी तथा और भी विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोची, शंख, मूंगा, रक्त रत्न आदि उत्तम सारभूत द्रव्य दिया, जो सात पीढ़ी तक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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