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आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा'
श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक आदि तथा गणनायक आदि के साथ आस्वादन, विस्वादन, परस्पर विभाजन और परिभोग करते हुए विचरने लगे।
कार भोजन करने के पश्चात् शुद्ध जल से आचमन किया । हाथ-मुख धोकर स्वच्छ हए, परम शुचि हए । फिर उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धीजन, परिजन आदि तथा गणनायक आदि का विपुल वस्त्र, गंध, माला और अलंकार से सत्कार किया । सत्कार-सन्मान करके इस प्रकार कहा-क्योंकि हमारा यह पुत्र जब गर्भ में स्थित था, तब इसकी माता को अकाल-मेघ सम्बन्धी दोहद हुआ था । अत एव हमारे इस पुत्र का नाम मेघकुमार होना चाहिए । इस प्रकार माता-पिता ने गौण अर्थात् गुणनिष्पन्न नाम रखा ।
तत्पश्चात् मेघकुमार पाँच धात्री द्वारा ग्रहण किया गया-पाँच धात्री उसका लालन-पोषण करने लगीं । वे इस प्रकार- क्षीरधात्री मंडनधात्री मज्जनधात्री क्रीड़ापनधात्री अंकधात्री-इनके अतिरिक्त वह मेघकुमार अन्यान्य कब्जा, चिलातिका, वामन, वडभी, बर्बरी, बकश देश की, योनक देश की, पल्हविक देश की, ईसिनिक, धोरुकिन, ल्हासक देश की, लकुस देश की, द्रविड़ देश की, सिंहल देश की, अरब देश की, पुलिंद देश की, पक्कण देश की, पारस देश की, बहल देश की, मुरुंड देश की, शबर देश की, इस प्रकार नाना देशों की, परदेश-अपने देश से भिन्न राजगृह को सुशोभित करनेवाली, इंगित, चिन्तित और प्रार्थित को जाननेवाली, अपने-अपने देश के वेष को धारण करनेवाली, निपुणोंमें भी अतिनिपुण, विनययुक्त दासियों द्वारा, स्वदेशीय दासियों द्वारा, वर्षधरों, कंचुकियों और महत्तरक के समुदाय से घिरा रहने लगा । वह एक के हाथ से दूसरे के हाथमें जाता, एक की गोद से दूसरे की गोद में जाता, गा-गाकर बहलाया जाता, उंगली पकड़कर चलाया जाता, क्रीड़ा आदि से लालन-पालन किया जाता एवं रमणीय मणिजटित फर्श पर चलाया जाता हुआ वायुरहित और व्याघातरहित गिरि-गुफामें स्थित चम्पक वृक्ष के समान सुखपूर्वक बढ़ने लगा ।तत्पश्चात् उस मेघकुमार के माता-पिता ने अनुक्रम से नामकरण, पालने में सूलाना, पैरों से चलाना, चोटी रखना, आदि संस्कार बड़ी-बड़ी ऋद्धि और सत्कारपूर्वक मानवसमूह के साथ सम्पन्न किए। मेघकुमार जब कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ अर्थात् गर्भ से आठ वर्ष का हुआ तब माता-पिता ने शुभ तिथि, करण और मुहूर्त में कलाचार्य के पास भेजा । कलाचार्य ने मेघकुमार को, गणित जिनमें प्रधान है ऐसी, लेखा आदि शकुनिरुत तक की बहत्तर कलाएं सूत्र से, अर्थ और प्रयोग से सिद्ध करवाईं तथा सिखलाईं।
__ वे कलाएं इस प्रकार हैं-लेखन, गणित, रूप बदलना, नाटक, गायन, वाद्य बजाना, स्वर जानना, वाद्य सुधारना, समान ताल जानना, जुआ खेलना, लोगों के साथ वाद-विवाद करना, पासों से खेलना, चौपड़ खेलना, नगर की रक्षा करना, जल और मिट्टी के संयोग से वस्तु का निर्माण करना, धान्य नीपजाना, नया पानो उत्पन्न करना, पानी को संस्कार करके शुद्ध करना एवं उष्ण करना, नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनना, विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना, लेप करना आदि, शय्या बनाना, शयन करने की विधि जानना आदि, आर्या छन्द को पहचानना और बनाना, पहेलियाँ बनाना और बूझाना, मागधिका अर्थात् मगध देश की भाषा में गाथा आदि बनाना, प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना, गीति छंद बनाना, श्लोक बनाना, सुवर्ण बनाना, नई चाँदी बनाना, चूर्ण गहने घड़ना, आदि तरुणी की सेवा करना-स्त्री के लक्षण जानना पुरुष के लक्षण जानना, अश्व के लक्षण जानना, हाथी के लक्षण जानना, गाय-बैल के लक्षण जानना, मुर्गों के लक्षण जानना, छत्र-लक्षण जानना, दंड-लक्षण जानना, वास्तुविद्या-सेना के पड़ाव के प्रमाण आदि जानना, नया नगर बसाने आदि की व्यूहमोर्चा रचना, सैन्य-संचालन प्रतिचार-चक्रव्यूह गरुड व्यह शकटव्यूह रचना सामान्य युद्ध करना, विशेष युद्ध करना, अत्यन्त विशेष युद्ध करना अट्ठि युद्ध, मुष्टियुद्ध, बाहुयुद्ध, लतायुद्ध बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना, खड्ग की मूठ आदि बनाना, धनुष-बाण कौशल चाँदी का पाक बनाना, सोने का पाक बनाना, सूत्र का छेदन करना, खेत जोतना, कमल की नाल का छेदन करना, पत्रछेदन करना, कुंडल आदि का छेदन करना, मृत (मूर्छित) को जीवित करना, जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और काक धूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना । सूत्र- २६
तत्पश्चात् वह कलाचार्य, मेघकुमार को गणित-प्रधान, लेखन से लेकर शकुनिरुत पर्यन्त बहत्तर कलाएं सूत्र
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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