SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 153
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक [श्रुतस्कन्ध-२] वर्ग-१ सूत्र - २२० उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । (वर्णन) उस राजगह के बाहर ईशान कोण में गुणशील नामक चैत्य था । (वर्णन समझ लेना) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मा नामक स्थविर उच्चजाति से सम्पन्न, कुल से सम्पन्न यावत् चौदह पूर्यों के वेत्ता और चार ज्ञानों से युक्त थे । वे पाँच सौ अनगारों से परिवृत्त होकर अनुक्रम से चलते हुए, ग्रामानुग्राम विचरते हुए और सुखे-सुखे विहार करते हुए जहाँ राजगृह नगर था और जहाँ गुणशील चैत्य था, वहाँ पधारे । यावत् संयम और तप के द्वारा आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे । सुधर्मास्वामी को वन्दना करने के लिए परीषद् नीकली । सुधर्मास्वामी ने धर्म का उपदेश दिया । तत्पश्चात् परीषद् वापिस चली गई। उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा अनगार के अन्तेवासी आर्य जम्बू अनगार यावत् सुधर्मास्वामी की उपासना करते हुए बोले-भगवन् ! यदि यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने छठे अंग के 'ज्ञातश्रुत' नामक प्रथम श्रुतस्कंध का यह अर्थ कहा है, तो भगवन् ! धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कंध का सिद्धपद को प्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! यावत् सिद्धिप्राप्त श्रमण भगवान महावीर ने धर्मकथा नामक द्वीतिय श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं । वे इस प्रकार हैं-चमरेन्द्र की अग्रमहिषियों का प्रथम वर्ग । वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की अग्रमहिषियों का दूसरा वर्ग । असुरेन्द्र को छोड़कर शेष नौ दक्षिण पति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का तीसरा वर्ग । असुरेन्द्र के सिवाय नौ उत्तर दिशा के भवनपति इन्द्रों की अग्रमहिषियों का चौथा वर्ग । दक्षिण दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्र-महिषियों का पाँचवा वर्ग। उत्तर दिशा के वाणव्यन्तर देवों के इन्द्रों की अग्रमहिषियों का छठा वर्ग । चन्द्र की अग्र-महिषियों का सातवा वर्ग । सूर्य की अग्रमहिषियों का आठवा वर्ग । शक्र इन्द्र की अग्रमहिषियों का नौवा वर्ग और ईशानेन्द्र की अग्रमहिषियों का दसवा वर्ग। भगवन् ! श्रमण भगवान यावत् सिद्धिप्राप्त ने यदि धर्मकथा श्रुतस्कंध के दस वर्ग कहे हैं, तो भगवन् ! प्रथम वर्ग का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान ने प्रथम वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं । काली, राजी, रजनी, विद्युत और मेघा । अध्ययन-१-काली भगवन् ! श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त महावीर भगवान ने यदि प्रथम वर्ग के पाँच अध्ययन कहे हैं तो हे भगवन् ! प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् सिद्धिप्राप्त भगवान ने क्या अर्थ कहा है ? जम्बू ! उस काल और उस समय में राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था, श्रेणिक राजा था और चेलना रानी थी । उस समय स्वामी का पदार्पण हआ । वन्दना करने के लिए परीषद नीकली, यावत परीषद भगवान की पर्युपासना करने लगी। उस काल और उस समय में, काली नामक देवी चमरचंचा राजधानी में, कालावतंसक भवन में, काल नामक सिंहासन पर आसीन थीं । चार हजार सामानिक देवियों, चार महत्तरिका देवियों, परिवार सहित तीनों परिषदों, सात अनीकों, सात अनीकाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों तथा अन्यान्य कालावतंसक भवन के निवासी असुरकुमार देवों और देवियों से परिवृत्त होकर जोर से बजने वाले वादिंत्र नृत्य गीत आदि से मनोरंजन करती हई विचर रही थी। वह काली देवी इस केवल-कल्प जम्बूद्वीप को अपने विपुल अवधिज्ञान से उपयोग लगाती हुई देख रही थी। उसने जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में, राजगृह नगर के गुणशील उद्यान में, यथाप्रतिरूप-साधु के लिए उचित स्थान की याचना करके. संयम और तप द्वारा आत्मा को भावित करते हए श्रमण भगवान महावीर को देखा । वह हर्षित मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 153
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy