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________________ आगम सूत्र ६, अंगसूत्र-६, 'ज्ञाताधर्मकथा' श्रुतस्कन्ध/वर्ग/अध्ययन/ सूत्रांक पाँच पाण्डवों का यह अर्थ सूनकर और समझकर कृष्ण वासुदेव कुपित हो उठे । उनकी तीन सल वाली भृकुटि ललाट पर चढ़ गई । वह बोले-'ओह, जब मैंने दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार करके पद्मनाभ को हत और मथित करके, यावत् पराजित करके अमरकंका राजधानी को तहस-नहस किया और अपने हाथों से द्रौपदी लाकर तुम्हें सौंपी, तब तुम्हें मेरा माहात्म्य नहीं मालूम हुआ ! अब तुम मेरा माहात्म्य जान लोगे ! इस प्रकार कहकर उन्होंने हाथ में एक लोहदण्ड लिया और पाण्डवों के रथ को चूर-चूर कर दिया । उन्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी । फिर उस स्थान पर रथमर्दन नामक कोंट स्थापित किया-रथमर्दन तीर्थ की स्थापना कृष्ण वासुदेव अपनी सेना के पड़ाव में आए । आकर अपनी सेना के साथ मिल गए। उसके पश्चात् कृष्ण वासुदेव जहाँ द्वारका नगरी थी, वहाँ आकर द्वारका नगरी में प्रविष्ट हुए। सूत्र - १७९ तत्पश्चात् वे पाँचों पाण्डव हस्तिनापुर नगर आए । पाण्डु राजा के पास पहुंचे और हाथ जोड़कर बोले-'हे तात ! कृष्ण ने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दी है ।' तब पाण्डु राजा ने पाँच पाण्डवों से प्रश्न किया-'पुत्रों ! किस कारण वासुदेव ने तुम्हें देशनिर्वासन की आज्ञा दी ?' तब पाँच पाण्डवों ने पाण्डु राजा को उत्तर दिया-'तात ! हम लोग अमरकंका से लौटे और दो लाख योजन विस्तीर्ण लवणसमुद्र को पार कर चूके, तब कृष्ण वासुदेव ने हम से कहा-देवानुप्रियो ! तुम लोग चलो, गंगा महानदी पार करो यावत् मेरी प्रतीक्षा करते हुए ठहरना । तब तक मैं सुस्थित देव से मिलकर आता हूँ-इत्यादि पूर्ववत् कहना । हम लोग गंगा महानदी पार करके नौका छिपाकर उनकी राह देखत ठहरे । तदनन्तर कृष्ण वासुदेव लवणसमुद्र के अधिपति सुस्थित देव से मिलकर आए । इत्यादि पूर्ववत्केवल कृष्ण के मन में जो विचार उत्पन्न हुआ था, वह नहीं कहना । यावत् कुपित होकर उन्होंने हमें देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी । तब पाण्डु राजा ते पाँच पाण्डवों से कहा-'पुत्रो ! तुमने कृष्ण वासुदेव का अप्रिय करके बूरा काम किया। तदनन्तर पाण्डु राजा ने कुन्ती देवी को बुलाकर कहा-'देवानुप्रिये ! तुम द्वारका जाओ और कृष्ण वासुदेव से निवेदन करो कि-'हे देवानुप्रिय ! तुमने पाँचों पाण्डवों को देशनिर्वासन की आज्ञा दी है, किन्तु हे देवानुप्रिय ! तुम तो समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के अधिपति हो । अत एव हे देवानुप्रिय ! आदेश दो की पाँच पाण्डव किस देश में या दिशा अथवा विदिशा में जाएं ? तब कुन्ती देवी, पाण्डु राजा के इस प्रकार कहने पर थी के स्कंध पर आरूढ़ होकर पहले कहे अनुसार द्वारका पहुँची । अग्र उद्यान में ठहरी । कृष्ण वासुदेव को सूचना करवाई । कृष्ण स्वागत के लिए आए । उन्हें महल में ले गए । यावत् पूछा-'हे पितृभगिनी ! आज्ञा कीजिए, आपके आने का क्या प्रयोवन है ?' तब कुन्ती देवी ने कृष्ण वासुदेव से कहा-'हे पुत्र ! तुमने पाँचों पाण्डवों को देश-नीकाले का आदेश दिया है और तुम समग्र दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र के स्वामी हो, तो बतलाओ वे किस देश में, किस दिशा या विदिशा में जाएं ?' तब कृष्ण वासुदेव ने कुन्ती देवी से कहा- पितृभगिनी ! उत्तम पुरुष अपूतिवचन होते हैं-उनके वचन मिथ्या नहीं होते । देवानुप्रिये ! पाँचों पाण्डव दक्षिण दिशा के वेलातट जाएं, वहाँ पाण्डु-मथुरा नामक नई नगरी बसाएं और मेरे अदृष्ट सेवक होकर रहें । इस प्रकार कहकर उन्होंने कुन्ती देवी का सत्कार-सम्मान किया, यावत् उन्हें बिदा दी। तत्पश्चात् कुन्ती देवी ने द्वारवती नगरी से आकर पाण्डु राज को यह अर्थ (वृत्तान्त) निवेदन किया । तब पाण्डु राजा ने पाँचों पाण्डवों को बुलाकर कहा-'पुत्रो ! तुम दक्षिणी वेलातट जाओ । वहाँ पाण्डुमथुरा नगरी बसा कर रहो ।' तब पाँचों पाण्डवों ने पाण्डु राजा की यह बात स्वीकार करके बल और वाहनों के साथ घोड़े और हाथी साथ लेकर हस्तिनापुर से बाहर नीकले । दक्षिणी वेलातट पर पहुँचे । पाण्डुमथुरा नगरी की स्थापना की। नगरी की स्थापना करके वे वहाँ विपुल भोगों के समूह से युक्त हो गए-सुखपूर्वक निवास करने लगे। सूत्र - १८० तत्पश्चात् एक बार किसी समय द्रौपदी देवी गर्भवती हुई । फिर द्रौपदी देवी ने नौ मास यावत् सम्पूर्ण होने पर सुन्दर रूप वाले और सुकुमार तथा हाथी के तालु के समान कोमल बालक को जन्म दिया । बारह दिन व्यतीत मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (ज्ञाताधर्मकथा)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 137
SR No.034673
Book TitleAgam 06 Gnatadharm Katha Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages162
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 06, & agam_gyatadharmkatha
File Size4 MB
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