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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-१७ सूत्र - ६९३
भगवती श्रुतदेवता को नमस्कार हो। सूत्र-६९४
(सत्तरहवें शतक में) सत्तरह उद्देशक हैं । कुञ्जर, संयत, शैलेशी, क्रिया, ईशान, पृथ्वी, उदक, वायु, एकेन्द्रिय, नाग, सुवर्ण, विद्युत, वायुकुमार और अग्निकुमार।
शतक-१७ - उद्देशक-१ सूत्र-६९५
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! उदायी नामक प्रधान हस्तिराज, किस गति से मरकर बिना अन्तर के यहाँ हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ ? गौतम ! वह असुरकुमार देवों में से मरकर सीधा यहाँ उदायी हस्तिराज के रूप में उत्पन्न हुआ है । भगवन् ! उदायी हस्तिराज यहाँ से काल के अवसर पर काल करके कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह रत्नप्रभापृथ्वी के एक सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकावास में नैरयिक रूप से उत्पन्न होगा । भगवन् ! वहाँ से अन्तररहित नीकलकर कहाँ जाएगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगा। भगवन् ! भूतानन्द नामक हस्तिराज किस गति से मरकर सीधा भूतानन्द हस्तिराज रूप में यहाँ उत्पन्न हुआ ? गौतम ! उदायी हस्तिराज के अनुसार भूतानन्द हस्तिराज की भी वक्तव्यता, सब दुःखों का अन्त करेगा तक जाननी चाहिए। सूत्र-६९६
भगवन ! कोई पुरुष, ताड के वक्ष पर चढे और फिर उस ताड से ताड के फल को हिलाए अथवा गिराए तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से ताड़ का वृक्ष और ताड़ का फल उत्पन्न हुआ है, उन जीवों को भी कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं। भगवन् ! यदि वह ताड़फल अपने भार के कारण यावत् नीचे गिरता है और उस ताड़फल के द्वारा जो जीव, यावत् जीवन से रहित हो जाते हैं, तो उससे उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! वह पुरुष कायिकी आदि चार क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जिन जीवों के शरीर से ताड़वृक्ष निष्पन्न हुआ है, और जिन जीवों के शरीर से ताड़-फल निष्पन्न हआ है, वे जीव कायिकी आदि पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । जो जीव नीचे पड़ते हए ताड़फल के लिए स्वाभाविक रूप से उपकारक होते हैं, उन जीवों को पाँचों क्रियाएं लगती हैं।
भगवन् ! कोई पुरुष वृक्ष के मूल को हिलाए या नीचे गिराए तो उसको कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम! उस पुरुष को कायिकी से लेकर यावत् प्राणातिपातिकी तक पाँचों क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीरों से मूल यावत् बीज निष्पन्न हुए हैं, उन जीवों को भी कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं । भगवन् ! यदि वह मूल अपने भारीपन के कारण नीचे गिरे यावत् जीवोंका हनन करे तो उस मूल को हिलाने वाले और नीचे गिराने वाले पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि चार क्रियाएं लगती हैं । जिन जीवों के शरीर से वह कन्द निष्पन्न हआ है यावत बीज निष्पन्न हआ है, उन जीवों को कायिकी आदि चार क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से मूल निष्पन्न हुआ है, उन जीवों को तथा जो जीव नीचे गिरते हुए मूल के स्वाभाविक रूप से उपकारक होते हैं, उन जीवों को भी कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं।
भगवन् ! जब तक वह पुरुष कन्द को हिलाता है या नीचे गिराता है, तब तक उसे कायिकी आदि पाँचों क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से कन्द निष्पन्न हुआ है, वे जीव भी कायिकी आदि पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं । भगवन् ! यदि वह कन्द अपने भारीपन के कारण नीचे गिरे, यावत् जीवों का हनन करे तो उस पुरुष को कितनी क्रियाएं लगती हैं ? गौतम ! उस पुरुष को कायिकी आदि चार क्रियाएं लगती हैं। जिन जीवों के शरीर से मूल, स्कन्ध आदि निष्पन्न हुए हैं, तथा जिन जीवों के शरीर से कन्द निष्पन्न हुए हैं, एवं जो जीव नीचे गिरते हुए उस कन्द के
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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