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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक बलिचंचा राजधानी तथा अन्यों का नित्य आधिपत्य करता हुआ विचरता है । उस रुचकेन्द्र उत्पातपर्वत के उत्तर से छह सौ पचपन करोड़ पैंतीस लाख पचास हजार योजन तिरछा जाने पर नीचे रत्नप्रभा पृथ्वी में पूर्ववत् यावत् चालीस हजार योजन जाने के पश्चात् वैरोचनेन्द्र वैरोचनराज बलि की बलिचंचा नामक राजधानी है । उस राजधानी का विष्कम्भ एक लाख योजन है । शेष पूर्ववत् यावत् बलिपीठ तथा उपपात से लेकर यावत् आत्मरक्षक तक सभी बातें पूर्ववत् । विशेषता यह है कि (बलि-वैरोचनेन्द्र की) स्थिति सागरोपम से कुछ अधिक की कही गई है। यावत् वैरोचनेन्द्र बलि है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-१० सूत्र-६८८ भगवन् ! अवधिज्ञान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! दो प्रकार का । यहाँ अवधिपद सम्पूर्ण कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-११ सूत्र-६८९ भगवन् ! सभी द्वीपकुमार समान आहार और समान निःश्वास वाले हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। प्रथम शतक के द्वीतिय उद्देशक में द्वीपकुमारों के अनुसार कितने ही समआयुष्य वाले और सम-उच्छ्वास-निःश्वास वाले होते हैं, तक कहना चाहिए । भगवन् ! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएं हैं ? चार । कृष्ण यावत् तेजो। भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ? गौतम! सबसे कम द्वीपकुमार तेजोलेश्या वाले हैं । कापोतलेश्या वाले उनसे असंख्यातगुणे हैं । उनसे नीललेश्या वाले और उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं । कृष्णलेश्या से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किससे अल्पर्द्धिक है अथवा महर्द्धिक है ? कृष्णलेश्या वाले द्वीपकुमारों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महर्द्धिक हैं; यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सभी से महर्द्धिक हैं । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-१२ सूत्र - ६९० भगवन् ! सभी उदधिकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् कहना चाहिए । हे भगवन् यह इसी प्रकार है, भगवन् ! इसी प्रकार है। शतक-१६ - उद्देशक-१३ सूत्र-६९१ द्वीपकुमारों के अनुसार दिशाकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए। शतक-१६-उद्देशक-१४ सूत्र - ६९२ द्वीपकुमारों के अनुसार स्तनितकुमारों के विषय में भी कहना चाहिए । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् यह इसी प्रकार है। शतक-१६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 92
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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