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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक भी हो सकता है और असत्य भी हो सकता है। संवृता-संवृत जीव जो स्वप्न देखता है, वह भी असंवृत के समान होता है। भगवन् ! जीव संवृत है, असंवृत है अथवा संवृतासंवृत है ? गौतम ! तीनों ही। सुप्त, (जागृत और सुप्त-जागृत) जीवों के दण्डक समान इनका भी कहना।
भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार के होते हैं ? गौतम ! ४२ प्रकार | भगवन् ! महास्वप्न कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! तीस प्रकार के । भगवन् ! सभी स्वप्न कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! बहत्तर प्रकार के कहे गए हैं।
___ भगवन् ! तीर्थंकर का जीव जब गर्भ में आता है, तब तीर्थंकर की माताएं कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं ? गौतम ! इन तीस महास्वप्नों में से चौद महास्वप्न देखकर जागृत होती है, यथा-गज, वृषभ, सिंह, यावत् अग्नि भगवन् ! जब चक्रवर्ती का जीव गर्भ में आता है, तब चक्रवर्ती की माताएं कितने महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं ? गौतम इन तीस महास्वप्नों में से तीर्थंकर की माताओं के समान चौदह महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं, यथागज यावत् अग्नि । भगवन् ! वासुदेव का जीव गर्भ में आता है, तब वासुदेव की माताएं कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं ? गौतम ! इन चौदह महास्वप्नों में से कोई भी सात महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं । भगवन् ! बलदेव का जीव जब गर्भ में आता है, तब बलदेव की माताएं कितने स्वप्न..इत्यादि पृच्छा ? गौतम ! इन चौदह महास्वप्नों में से किन्ही चार महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं । भगवन् ! माण्डलिक का जीव गर्भ में आने पर माण्डलिक की माताएं. इत्यादि प्रश्न । गौतम! इन में से किसी एक महास्वप्न को देखकर जागृत होती हैं। सूत्र-६७९
श्रमण भगवान महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। (१) एक महान घोर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया । (२) श्वेत पाँखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल का स्वप्न । (३) चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल का स्वप्न । (४) स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महान् मालायुगल को देखा । (५) स्वप्न में श्वेतवर्ण के एक महान् गोवर्ग को देखा, प्रतिबद्ध हुए । (६) चारों ओर से पुष्पित एक महान् पद्मसरोवर का स्वप्न । (७) सहस्त्रों तरंगों और कल्लोलों से सुशोभित एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरे । (८) अपने तेज से जाज्वल्यमान एक महान् सूर्य का स्वप्न । (९) एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग में चारों ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित देखा। (१०) महान् मन्दर पर्वत की मन्दर-चूलिका पर श्रेष्ठ सिंहासन पर बैठे हुए अपने आपको देखकर जागृत हुए।
श्रमण भगवान महावीर ने प्रथम स्वप्न में जो एक महान् भयंकर और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्षसम लम्बे पिशाच को पराजित किया हुआ देखा, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान महावीर ने मोहनीय कर्म को समूल नष्ट किया । दूसरे स्वप्न में श्वेत पंख वाले एक महान् पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि भगवान महावीर शुक्लध्यान प्राप्त करके विचरे । तीसरे स्वप्न में चित्र-विचित्र पंखों वाले एक पुंस्कोकिल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह हुआ कि श्रमण भगवान महावीर ने स्वसमय-परसमय के विविध-विचारयुक्त द्वादशांग गणिपिटक का कथन किया, प्रज्ञप्त किया, प्ररूपित किया, दिखलाया, निदर्शित किया और उपदर्शित किया । यथाआचार सूत्रकृत् यावत् दृष्टिवाद । चौथे स्वप्न में एक सर्वरत्नमय महान् मालायुगल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने दो प्रकार का धर्म बतलाया । यथा-अगार-धर्म और अनगार-धर्म । पाँचवे स्वप्न में एक श्वेत महान् गोवर्ग देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर के (चार प्रकार का) संघ हुआ, यथा-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका।
छठे स्वप्न में एक कुसुमित पद्मसरोवर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की, यथा-भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । सातवें स्वप्न में हजारों तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी अनादि-अनन्त यावत् संसार-कान्तार को पार कर गए । आठवें स्वप्न में तेज से जाज्वल्यमान एक महान् दीवाकर को देखकर जागृत हए, उसका फल यह कि श्रमण भगवान महावीर स्वामी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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