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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक वह छह प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है) । जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? वह कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् नहीं । यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । इसी प्रकार पुद्गलास्ति-काय के प्रदेशों से तथा अद्धाकाल के समयों से स्पृष्ट होने के विषय में जानना चाहिए ।
सूत्र- ५७९
भगवन् ! जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों में स्पृष्ट होता है ? गौतम ! वह जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से और उत्कृष्टपद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार वह अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । (भगवन् !) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह स्पृष्ट होता है ? (गौतम ! वह) आकाशास्तिकाय के सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है । भगवन् ! जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से वह (जीवास्तिकायिक एक प्रदेश) स्पृष्ट होता है ? (गौतम !) शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के प्रदेश के समान (समझना चाहिए) । भगवन् ! एक पुद्गलास्तिकायिक प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? गौतम ! जीवास्तिकाय के एक प्रदेश अनुसार जानना ।
भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? गौतम ! वे जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से स्पृष्ट हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे पृष्ट होते हैं । भगवन् ! वे आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम ! वे आकाशास्ति-काय के १२ प्रदेशों से स्पृष्ट हैं । शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए ।
भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम! जघन्य पद में आठ प्रदेशों और उत्कृष्ट पद में १७ प्रदेशों से । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे स्पृष्ट होते हैं । भगवन् आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (वे स्पृष्ट होते हैं ?) गौतम ! सत्तरह प्रदेशों से । शेष धर्मास्तिकाय के समान जानना । इसी आलापक के समान यावत् दश प्रदेशों तक कहना । विशेषता यह है कि जघन्य पद में दो और उत्कृष्ट पद में पाँच का प्रक्षेप करना ।
(भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? जघन्य पद में दस प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बाईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं । (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के पाँच प्रदेश ? जघन्य बारह प्रदेशों से और उत्कृष्ट सत्ताईस प्रदेशों से । (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश ? (गौतम !) जघन्यपद में चौदह और उत्कृष्ट पद में बत्तीस प्रदेशों से । (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में सोलह और उत्कृष्ट पद में सैंतीस प्रदेशों से ।
(भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम ! वे) जघन्य पद में १८ और उत्कृष्ट पद में बयालीस प्रदेशों से ( स्पृष्ट होते हैं ।) (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में बीस और उत्कृष्ट पद में छयालीस प्रदेशों से । (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के दश प्रदेश ? (गौतम !) जघन्य पद में बाईस और उत्कृष्ट पद में बावन प्रदेशों से । आकाशास्तिकाय के लिए सर्वत्र उत्कृष्ट पद ही कहना चाहिए । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश ? गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़े और उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें, उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं । अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं? पूर्ववत् ।
भगवन् ! आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पाँच गुणे करके उनमें दो रूप और जोड़ें, उतने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। (भगवन् !) वे जीवास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से । (भगवन् !) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) अनन्त प्रदेशों से । (भगवन् !) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होते हैं ? (गौतम !) कदाचित् स्पृष्ट होते हैं, कदाचित् स्पृष्ट नहीं होते, यावत् अनन्त समयों से स्पृष्ट होते हैं । भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के असंख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? गौतम ! जघन्य पद में उन्हीं असंख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप अधिक
दीपरत्नसागर कृत् " (भगवती २) आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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