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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-१३ सूत्र-५६३
तेरहवें शतक के दस उद्देशक इस प्रकार हैं-पृथ्वी, देव, अनन्तर, पृथ्वी, आहार, उपपात, भाषा, कर्म, अनगार में केयाघटिका और समुद्घात ।
शतक-१३ - उद्देशक-१ सूत्र-५६४
राजगृह नगर में यावत् पूछा-भगवन् ! (नरक-) पृथ्वीयाँ कितनी हैं ? गौतम ! सात, यथा-रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तम पृथ्वी । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में कितने लाख नारकावास हैं ? गौतम ! तीस लाख । भगवन् ! वे नारकावास संख्येय (योजन) विस्तृत हैं या असंख्येय (योजन) विस्तृत हैं ? गौतम ! वे संख्येय (योजन) विस्तृत भी हैं और असंख्येय (योजन) विस्तृत भी हैं।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्येयविस्तृत नरकों में एक समय में कितने नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने कापोतलेश्या वाले नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने कृष्णपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने शुक्लपाक्षिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने संज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने असंज्ञी जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने भवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने अभवसिद्धिक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने आभिनिबोधिकज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने श्रुतज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने अवधिज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने मति-अज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने श्रुत-अज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने विभंगज्ञानी उत्पन्न होते हैं ? कितने चक्षुदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? कितने अचक्षुदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? कितने अवधिदर्शनी उत्पन्न होते हैं ? कितने आहार - संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने भय-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने मैथुन-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने परिग्रह-संज्ञा के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने स्त्रीवेदक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने पुरुषवेदक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने नपुंसकवेदक जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने क्रोधकषायी जीव उत्पन्न होते हैं ? यावत् कितने लोभकषायी उत्पन्न होते हैं? कितने श्रोत्रेन्द्रिय के उपयोग वाले उत्पन्न होते हैं ? यावत् कितने स्पर्शेन्द्रिय के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने नो-इन्द्रिय (मन) के उपयोग वाले जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने मनोयोगी जीव उत्पन्न होते हैं? कितने वचनयोगी जीव उत्पन्न होते हैं ? कितने काययोगी उत्पन्न होते हैं? कितने साकारोपयोगीवाले जीव उत्पन्न होते हैं? और कितने अनाकारोपयोगवाले जीव उत्पन्न होते हैं?
गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्येयविस्तृत नरकों में एक समय में जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उत्पन्न होते हैं । जघन्य एक, दो या तीन, और उत्कृष्ट संख्यात कापोतलेश्यी जीव उत्पन्न होते हैं । जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात कृष्णपाक्षिक उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक, संज्ञी, असंज्ञी, भवसिद्धिक, अभवसिद्धिक, आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुत-ज्ञानी, मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी, विभंग-ज्ञानी जीवों के विषय में भी जानना । चक्षुदर्शनी जीव उत्पन्न नहीं होते । अचक्षुदर्शनी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, आहारसंज्ञोपयुक्त, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी जानना । स्त्रीवेदी जीव उत्पन्न नहीं होते, न पुरुषवेदी जीव उत्पन्न होते हैं । नपुंसकवेदी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी जीवों को जानना । श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त यावत स्पर्शेन्द्रियोपयुक्त जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते । नो-इन्द्रियोपयुक्त जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । मनोयोगी और वचनयोगी जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते, काययोगी जीव जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार साकारोपयोग वाले एवं अनाकारो-पयोग वाले जीवों के विषय में भी समझना ।
भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में से एक समय में कितने नैरयिक उद्वर्त्तते हैं? कितने कापोतलेश्यी नैरयिक उद्वर्त्तते हैं? यावत् कितने अनाकारोपयुक्त नैरयिक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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