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शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शेष कथन
सूत्र-१०८०
सम्पूर्ण भगवती सूत्र के कुल १३८ शतक हैं और १९२५ उद्देशक हैं । प्रवर (सर्वश्रेष्ठ) ज्ञान और दर्शन के धारक महापुरुषों ने इस अंगसूत्र में ८४ लाख पद कहे हैं तथा विधि-निषेधरूप भाव तो अनन्त कहे हैं। सूत्र-१०८१
गुणों से विशाल संघरूपी समुद्र सदैव विजयी होता है, जो ज्ञानरूपी विमल और विपुल जल से परिपूर्ण है, जिसकी तप, नियम और विनयरूपी वेला है और जो सैकड़ों हेतुओं-रूप प्रबल वेग वाला है। सूत्र-१०८२
गौतम आदि गणधरों को नमस्कार हो । भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति को नमस्कार हो तथा द्वादशांग-गणिपिटक को नमस्कार हो। सूत्र- १०८३-१०८५
कच्छप के समान संस्थित चरण वाली तथा अम्लान कोरंट की कली के समान, भगवती श्रुतदेवी मेरे मति अन्धकार को विनष्ट करे। जिसके हाथमें विकसित कमल है, जिसने अज्ञानान्धकार का नाश किया है, जिसको बुध और विबुधों ने सदा नमस्कार किया है, ऐसी श्रुताधिष्ठात्रि देवी मुझे भी बुद्धि प्रदान करे । जिसकी कृपा से ज्ञान सीखा है, उस श्रुतदेवता को प्रणाम करता हूँ तथा शान्ति करने वाली उस प्रवचनदेवी को नमस्कार करता हूँ। सूत्र - १०८६
श्रुतदेवता, कुम्भधर यक्ष, ब्रह्मशान्ति, वैरोट्यादेवी, विद्या और अन्तहुंडी, लेखक के लिए अविघ्न प्रदान करे। सूत्र - १०८७
व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ के आठ शतकों के दो-दो उद्देशकों का उद्देश एक-एक दिन में दिया जाता है, किन्तु चतुर्थ शतक के आठ उद्देशकों का उद्देश पहले दिन किया जाता है, जबकि दूसरे दिन दो उद्देशों का किया जाता है। नौवें शतक से लेकर आगे यावत् बीसवें शतक तक जितना-जितना शिष्य की बुद्धि में स्थिर हो सके, उतना-उतना एक दिन में उपदिष्ट किया जाता है । उत्कृष्टतः एक दिन में एक शतक का भी उद्देश दिया जा सकता है, मध्यम दो दिन में
और जघन्य तीन दिन में एक शतक का पाठ दिया जा सकता है। किन्तु ऐसा बीसवें शतक तक किया जा सकता है। विशेष यह है कि इनमें से पन्द्रहवे गोशलकशतक का एक ही दिन में वाचन करना चाहिए । यदि शेष रह जाए तो दूसरे दिन आयंबिल करके वाचन करना चाहिए । फिर भी शेष रह जाए तो तीसरे दिन दो आयंबिल करके वाचन करना चाहिए । इक्कीसवे, बाईसवे और तेईसवे शतक का एक-एक दिन में उद्देश करना चाहिए। चौबीसवे शतक के छहछह उद्देशकों का प्रतिदिन पाठ करके चार दिनों में पूर्ण करना चाहिए । पच्चीसवे शतक के प्रतिदिन छह-छह उद्देशक बांच कर दो दिनों में पूर्ण करना चाहिए।
एक समान पाठ वाले बन्धीशतक आदि सात शतक का पाठवाचन एक दिन में, बारह एकेन्द्रियशतकों का वाचन एक दिन में बारह श्रेणीशतकों का वाचन एक दिन में तथा एकेन्द्रिय के बारह महायुग्मशतकों का वाचन एक ही दिन में करना चाहिए । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के बारह, त्रीन्द्रिय के बारह, चतुरिन्द्रिय के बारह, असंज्ञीपंचेन्द्रिय के बारह शतकों का तथा इक्कीस संज्ञीपंचेन्द्रिययुग्म शतकों का वाचन एक-एक दिन में करना चाहिए । इकतालीसवे राशियुग्मशतक की वाचना भी एक दिन में दी जानी चाहिए।
एक
५- भगवती/व्याख्याप्रग्यप्ति अङ्गसूत्र-५ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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