________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक कृष्णलेश्या के समान चार उद्देशक कहने चाहिए । इस प्रकार (नीललेश्यादि पंचविध) सम्यग्दृष्टि जीवों के भी भवसिद्धिक जीवों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-४१ - उद्देशक-११३ से १४० सूत्र-१०७६
भगवन् ! मिथ्यादृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? मिथ्यादृष्टि के अभिलाप से यहाँ भी अभवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक कहने चाहिए । हे भगवन् ! यह० ।
_शतक-४१ - उद्देशक-१४१ से १६८ सूत्र-१०७७
भगवन् ! कृष्णपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशिविशिष्ट नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! अभवसिद्धिक-उद्देशकों के समान अट्राईस उद्देशक कहना।
शतक-४१ - उद्देशक-१६९ से १९६ सूत्र-१०७८
भगवन् ! शुक्लपाक्षिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशि-विशिष्ट नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! भवसिद्धिक उद्देशकों के समान अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । इस प्रकार यह (४१ वाँ) राशियुग्म शतक इन सबको मिलाकर १९६ उद्देशकों का है यावत्-भगवन् ! शुक्ललेश्या वाले शुक्लपाक्षिक राशियुग्म-कृतयुग्म-कल्योजराशिविशिष्ट वैमानिक यावत् यदि सक्रिय हैं तो क्या उस भव को ग्रहण करके सिद्ध हो जाते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। सूत्र - १०७९
भगवान् गौतमस्वामी, श्रमण भगवान महावीर की तीन बार आदक्षिण - दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करते हैं, यों तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके वे उन्हें वन्दन-नमस्कार करते हैं । तत्पश्चात् इस प्रकार बोलते हैं- भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह अवितथ-सत्य है, भगवन् ! यह असंदिग्ध है, भन्ते ! यह ईच्छित है, भन्ते ! प्रतीच्छित-(स्वीकृत) है, भन्ते ! यह ईच्छित-प्रतीच्छित है, भगवन् ! यह अर्थ सत्य है, जैसा आप कहते हैं, क्योंकि अरिहंत भगवंत अपूर्व वचन वाले होत हैं, यों कहकर वे श्रमण भगवान महावीर का पुनः वन्दननमस्कार करते हैं । तत्पश्चात् तप और संयम से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं।
शतक-४१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 252