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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक भगवन् ! वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम! कितने ही इसी भव में सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं और कितने ही उसी भव में सिद्धबुद्ध-मुक्त नहीं होते, यावत् सर्व दुःखों का अन्त नहीं कर पाते। भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं तो वे सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम! वे सलेश्यी होते हैं । भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं अथवा अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं। भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक-सम्बन्धी कथन नैरयिक के समान है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-४१ - उद्देशक-२ सूत्र-१०६९ भगवन् ! राशियुग्म-त्र्योजराशि-परिमित नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत्-ये तीन, सात, ग्यारह, पन्द्रह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । सान्तर पर्ववत । भगवन ! वे जीव जिस समय त्र्योज-राशि होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं, तथा जिस समय कृतयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय त्र्योज-राशि होते हैं । गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । भगवन् ! जिस समय वे जीव त्र्योजराशि होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मराशि होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मराशि होते हैं, क्या उस समय वे त्र्योजराशि होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। कल्योजराशि के साथ कृतयुग्मादिराशि-सम्बन्धी वक्तव्यता भी इसी प्रकार जाननी चाहिए। शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् वैमानिक जानना किन्तु सभी का उपपात व्युत्क्रान्तिपद के अनुसार समझना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-४१ - उद्देशक-३ सूत्र-१०७० ___भगवन् ! राशियुग्म-द्वापरयुग्मराशि वाले नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना। किन्तु इनका परिमाण-ये दो, छह, दस, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव जिस समय द्वापर युग्म होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं, अथवा जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्म होते हैं? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार त्र्योजराशि के साथ भी कृतयुग्मादि सम्बन्धी वक्तव्यता कहना । कल्योजराशि के साथ भी कृतयुग्मादि-सम्बन्धी वक्तव्यता इसी प्रकार है । शेष कथन प्रथम उद्देशक के अनुसार, वैमानिक पर्यन्त करना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-४१- उद्देशक-४ सूत्र-१०७१ भगवन् ! राशियुग्म-कल्योजराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । विशेष-ये एक, पाँच, नौ, तेरह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! वे जीव जिस समय कल्योज होते हैं, क्या उस समय कृतयुग्म होते हैं अथवा जिस समय कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । इसी प्रकार त्र्योज तथा द्वापरयुग्म के साथ कृतयुग्मादि कथन जानना । शेष सब वर्णन प्रथम उद्देशक के समान वैमानिक पर्यन्त जानना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-४१ - उद्देशक-५ से २८ सूत्र-१०७२ भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात धूमप्रभापृथ्वी समान है । शेष कथन प्रथम उद्देशक अनुसार जानना । असुरकुमारों के विषय में भी इसी प्रकार वाणव्यन्तर पर्यन्त कहना चाहिए । मनुष्यों के विषय में भी नैरयिकों के समान कथन करना । वे आत्मअयश मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 250
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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