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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक शतक-४१
उद्देशक-१ सूत्र-१०६८
भगवन् ! राशियुग्म कितने कहे गए हैं ? गौतम ! चार, यथा-कृतयुग्म, यावत् कल्योज । भगवन् ! राशि-युग्म चार कहे हैं, ऐसा किस कारण से कहते हैं ? गौतम ! जिस राशि में चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में ४ शेष रहें, उस राशियुग्म को कृतयुग्म कहते हैं, यावत् जिस राशि में से चार-चार अपहार करते हुए अन्त में एक शेष रहे, उस राशियुग्म को कल्योज कहते हैं। इसी कारण से हे गौतम ! यावत् कल्योज कहलाता है।
भगवन् ! राशियुग्म-कृतयुग्मरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इनका उपपात व्युत्क्रान्तिपद अनुसार जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! वे जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर ? गौतम ! वे जीव सान्तर भी उत्पन्न होते हैं और निरन्तर भी । जो सान्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय का अन्तर करके उत्पन्न होते हैं । जो निरन्तर उत्पन्न होते हैं, वे जघन्य दो समय और उत्कृष्ट असंख्यात समय तक निरन्तर प्रतिसमय अविरहितरूप से उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! वे जीव जिस समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं, क्या उसी समय त्र्योजराशिरूप होते हैं और जिस समय त्र्योजराशियुक्त होते हैं, उसी समय कृतयुग्मराशिरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं। भगवन् ! जिस समय वे जीव कृतयुग्मरूप होते हैं, क्या उस समय द्वापरयुग्मरूप होते हैं तथा जिस समय वे द्वापरयुग्मरूप होते हैं, उसी समय कृतयुग्मरूप होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। भगवन् ! जिस समय वे कृतयुग्म होते हैं, क्या उस समय कल्योज होते हैं तथा जिस समय कल्योज होते हैं, उस समय कृतयुग्मराशि होते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवन् ! वे जीव कैसे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि उपपातशतक अनुसार वे आत्मप्रयोग से उत्पन्न होते हैं, परप्रयोग से नहीं । भगवन् ! वे जीव आत्म-यश से उत्पन्न होते हैं अथवा आत्मअयश से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि वे जीव आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या वे आत्म-यश से जीवनिर्वाह करते हैं अथवा आत्म-अयश से जीवननिर्वाह करते हैं ? गौतम ! वे आत्म-अयश से करते हैं।
भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से अपना जीवननिर्वाह करते हैं, तो वे सलेश्यी होते हैं अथवा अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी होते हैं। भगवन् ! यदि वे सलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं । भगवन् ! यदि वे सक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जाते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त कर देते हैं ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है।
भगवन् ! राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? नैरयिकों के कथन अनुसार यहाँ जानना । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च तक इसी प्रकार कहना । विशेष-वनस्पतिकायिक जीव यावत् असंख्यात या अनन्त उत्पन्न होते हैं, शेष पूर्ववत् ।
मनुष्यों से सम्बन्धित कथन भी वे आत्म-यश से उत्पन्न नहीं होते, किन्तु आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं, तक कहना । भगवन् ! यदि वे आत्म-अयश से उत्पन्न होते हैं तो क्या आत्म-यश से जीवन-निर्वाह करते हैं या आत्म-अयश से जीवन निर्वाह करते हैं । गौतम ! आत्म-यश से भी और आत्म-अयश से भी जीवन निर्वाह करते हैं। भगवन् ! यदि वे आत्मयश से जीवन-निर्वाह करते हैं तो सलेश्यी होते हैं या अलेश्यी होते हैं ? गौतम ! वे सलेश्यी भी होते हैं और अलेश्यी भी । भगवन् ! यदि वे अलेश्यी होते हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे किन्तु अक्रिय होते हैं भगवन् ! यदि वे अक्रिय होते हैं तो क्या उसी भव को ग्रहण करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं? हाँ, गौतम ! करते हैं । भगवन् ! यदि वे सलेश्यी हैं तो सक्रिय होते हैं या अक्रिय होते हैं ? गौतम ! वे सक्रिय होते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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