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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक- ३५ शतकशतक - १ - उद्देशक - १ शतक/ वर्ग /उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र - १०४४ भगवन् ! महायुग्म कितने बताए गए हैं ? गौतम ! सोलह, यथा- कृतयुग्मकृतयुग्म, कृतयुग्मत्र्योज, कृतयुग्मद्वापरयुग्म, कृतयुग्मकल्योज, त्र्योजकृतयुग्म, त्र्योजत्र्योज, त्र्योजद्वापरयुग्म, त्र्योजकल्योज, द्वापरयुग्मकृत-युग्म, द्वापरयुग्मयोज, द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म, द्वापरयुग्मकल्योज, कल्योजकृतयुग्म, कल्योजत्र्योज, कल्योजद्वापर युग्म और कल्योजकल्योज | भगवन् ! क्या कारण है कि महायुग्म सोलह कहे गए हैं? गौतम ! जिस राशि में चार संख्या का अपहार करते हुए - (१) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म (चार) हों तो वह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (२) तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मत्र्योज कहलाती है। (३) दो शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है, (४) एक शेष रहे और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मकल्योज कहलाती है, (५) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजकृतयुग्म कहलाती है । (६) तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी योग हों तो वह राशि त्र्योजत्र्योज कहलाती है । (७) दो बचें और उस राशि के अपहारसमय योज हों तो वह राशि त्र्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, (८) एक बचे और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजकल्योज कहलाती है, (९) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म (दो) हों तो वह राशि द्वापरयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (१०) तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हो तो वह राशि द्वापरयुग्मत्र्योज कहलाती है । (११) दो बचें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हों तो वह राशि द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है । (१२) एक शेष रहे और उस राशि के अपहार - समय द्वापरयुग्म हों, तो वह राशि द्वापरयुग्मकल्योज कहलाती है, (१३) चार शेष रहें और उस राशि का अपहार-समय कल्योज (एक) हो तो वह राशि कल्योजकृतयुग्म कहलाती है, (१४) तीन शेष रहें और उस राशि का अपहार - समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजत्र्योज कहलाती है । (१५) दो बचें और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, और (१६) एक शेष रहे और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजकल्योज कहलाती है। इसी कारण से हे गौतम! कल्योजकल्योज तक कहा गया है । सूत्र - १०४५ भगवन् ! कृतयुग्म-कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उत्पलोद्देशक के उपपात समान उपपात कहना चाहिए। भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त । भगवन् ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक-एक अपहृत किये जाएं तो कितने काल में अपहृत होते हैं ? गौतम ! अनन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी बीत जाएं तो भी वे अपहृत नहीं होते। इनकी ऊंचाई उत्पलोद्देशक के अनुसार जानना । भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं या अबन्धक ? गौतम ! वे बन्धक हैं, अबन्धक नहीं वे जीव आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष सभी कर्मों के बन्धक हैं। आयुष्यकर्म के वे बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? गौतम ! वेदक हैं, अवेदक नहीं हैं। इसी प्रकार सभी कर्मों में जानना । भगवन् ! वे जीव साता के वेदक हैं अथवा असाता के ? गौतम ! वे सातावेदक भी होते हैं, अथवा असातावेदक भी एवं उत्पलोद्देशक की परिपाटी के अनुसार वे सभी कर्मों के उदय वाले हैं, वे छह कर्मों के उदीरक हैं तथा वेदनीय और आयुष्यकर्म के उदीरक भी हैं और अनुदीरक भी हैं । भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे जीव कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी अथवा तेजोलेश्यी होते हैं । ये मिथ्यादृष्टि होते हैं । वे अज्ञानी होते हैं । वे नियमतः दो अज्ञा दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती -२ )" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद” Page 240
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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