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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक है। भगवन् ! भावदेवों की स्थिति? गौतम ! जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की है। सूत्र - ५५७
भगवन् ! क्या भव्यदेव एक रूप की अथवा अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में समर्थ हैं ? गौतम ! वह एक रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में भी समर्थ हैं । एक रूप की विकुर्वणा करता हुआ वह एक एकेन्द्रिय रूप यावत् अथवा एक पंचेन्द्रिय रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करता हुआ अनेक एकेन्द्रिय रूपों यावत् अथवा अनेक पंचेन्द्रिय रूपों की विकुर्वणा करता है । वे रूप संख्येय या असंख्येय, सम्बद्ध अथवा असम्बद्ध अथवा सदृश या असदृश विकुर्वित किये जाते हैं । बाद वे अपना यथेष्ट कार्य करते हैं । इसी प्रकार नरदेव और धर्मदेव का विकुर्वणा विषय है।
देवाधिदेव (के विकुर्वणा-सामर्थ्य) के विषय में प्रश्न-गौतम ! (वे) एक रूप की और अनेक रूपों की विकुर्वणा करने में भी समर्थ हैं । किन्तु शक्ति होते हुए भी उत्सुकता के अभाव में उन्होंने क्रियान्विति रूप में कभी विकुर्वणा नहीं की, नहीं करते हैं और न करेंगे। भव्य-द्रव्यदेव (के विकर्वणा-सामर्थ्य) के समान ही भावदेव को जानना। सूत्र-५५८
भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव मरकर तुरन्त कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, यावत् अथवा देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु (एकमात्र) देवों में उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) देवों में उत्पन्न होते हैं (तो भवनपति आदि किन देवों में उत्पन्न होते हैं ?) (गौतम!) वे सर्वदेवों में उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! नरदेव मरकर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! नैरयिकोंमें होते हैं, (किन्तु) तिर्यञ्चों, मनुष्यों और देवों में उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! नैरयिकों कौन-सी नरकों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सातों पृथ्वीयों में उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! धर्मदेव आयुष्य पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! न तो नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों में उत्पन्न होते हैं । (भगवन् !) यदि वे देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासी देवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे न तो भवनवासियों में उत्पन्न होते हैं, न वाणव्यन्तर देवों में और न ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु वैमानिक देवों में सभी वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं । उनमें से कोई-कोई धर्मदेव सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखों का अन्त कर देते हैं।
भगवन् ! देवाधिदीव आयुष्य पूर्ण कर दूसरे ही क्षण कहाँ ते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं । भगवन् ! भावदेव, आयु पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! व्युत्क्रान्तिपद में जिस प्रकार असुरकुमारों की उद्वर्त्तना कही है, उसी प्रकार यहाँ भावदेवों की भी उद्वर्त्तना कहना।
भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव, भव्यद्रव्यदेवरूप से कितने काल तक रहता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और
ल्योपम । इसी प्रकार जिसकी जो (भव-)स्थिति कही है, उसी प्रकार उसकी संस्थिति भी यावत् भावदेव तक कहनी चाहिए । विशेष यह है कि धर्मदेव की (संस्थिति) जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्व-कोटि वर्ष है।
भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकाल । भगवन् ! नरदेवों का कितने काल का अन्तर होता है ? गौतम ! जघन्य सागरोपम से कुछ अधिक और उत्कृष्ट अनन्त काल, देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त-काल | भगवन् ! धर्मदेव का अन्तर कितने काल तक का होता है ? गौतम ! जघन्य पल्योपम-पृथक्त्व तक और उत्कृष्ट अनन्तकाल यावत् देशोन अपार्द्ध पुद्गलपरावर्त्त । भगवन् ! देवाधिदेवों का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! देवाधिदेवों का अन्तर नहीं होता । भगवन् ! भावदेव का अन्तर कितने काल का होता है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकाल ।
भगवन् ! इन भव्यद्रव्यदेव, नरदेव यावत् भावदेव में से कौन (देव) किन (देवों) से अल्प, बहुत, तुल्य या
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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