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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक गौतम ! यह जो बहुत-से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, वे मिथ्या कहते हैं । मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ- यह निश्चय है कि राहु महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न उत्तम वस्त्रधारी, श्रेष्ठ माला का धारक, उत्कृष्ट सुगन्धधर और उत्तम आभूषणधारी देव है। राहु देव के नौ नाम कहे हैं-(१) शृंगाटक, (२) जटिलक, (३) क्षत्रक, (४) खर, (५) दर्दुर, (६) मकर, (७) मत्स्य, (८) कच्छप और (९) कृष्णसर्प ।
राहुदेव के विमान पाँच वर्ण के कहे हैं-काला, नीला, लाल, पीला और श्वेत । इनमें से राहु का जो काला विमान है, वह खंजन के समान कान्ति वाला है। राहुदेव का जो नीला विमान है, वह हरी तुम्बी के समान कान्ति वाला है । राहु का जो लोहित विमान है, वह मजीठ के समान प्रभा वाला है । राहु का जो पीला विमान है, वह हल्दी के समान वर्ण वाला है और राहु का जो शुक्ल विमान है, वह भस्मराशि के समान कान्ति वाला है। जब गमन -आगमन करता हआ, विकर्वणा करता हआ तथा कामक्रीडा करता हआ राहदेव, पूर्व में स्थित चन्द्रमा की ज्योत्सना को ढंककर पश्चिम की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पूर्व में दिखाई देता है और पश्चिम में राहु दिखाई देता है। जब आता हआ या जाता हआ, अथवा विक्रिया करता हआ, या कामक्रीडा करता हआ राह, चन्द्रमा की दीप्ति को पश्चिमदिशा में आच्छादित करके पूर्वदिशा की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पश्चिम में दिखाई देता है और राह पूर्व में दिखाई देता है । इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर के दो आलापक हैं । इसी प्रकार ईशानकोण और नैऋत्यकोण के
और इसी प्रकार आग्नेयकोण एवं वायव्यकोण के दो आलापक हैं । इसी प्रकार जब आता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, बार-बार चन्द्रमा की ज्योत्सना को आवृत्त करता रहता है, तब मनुष्य कहते हैं- राहु ने चन्द्रमा को ऐसे ग्रस लिया, राहु इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रस रहा है। जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु चन्द्रद्युति को आच्छादित करके पास से होकर नीकलता है, तब मनुष्य कहते हैं
चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला, इस प्रकार चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला | जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की प्रभा को आवृत्त करके वापस लौटता है, तब मनुष्य कहते हैंराहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया, राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया । जब आता हुआ या यावत् कामक्रीड़ा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति को नीचे से, दिशाओं एवं विदिशाओं से ढंक कर रहता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं राहु ने इसी प्रकार चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।
भगवन् ! राहु कितने प्रकार का है ? गौतम ! दो प्रकार का, यथा-ध्रुवराहु और पर्वराहु । उनमें से जो ध्रुव-राहु है, वह कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से लेकर प्रतिदिन अपने पन्द्रहवें भाग से, चन्द्रबिम्ब के पन्द्रहवे भाग को ब रहता है. यथा-प्रथमा को (चन्द्रमा) के प्रथम भाग को ढंकता है, द्वीतिया को दूसरे भाग को ढंकता है, इसी प्रकार यावत् अमावास्या को पन्द्रहवें भाग को ढंकता है । कृष्णपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा रक्त (सर्वथा आवृत्त) हो जाता है, और शेष समय में चन्द्रमा रक्त और विरक्त रहता है । इसी कारण शुक्लपक्ष का प्रतिपदा से लेकर यावत् पूर्णिमा तक प्रतिदिन पन्द्रहवाँ भाग दिखाई देता रहता है, शुक्लपक्ष के अन्तिम समय में चन्द्रमा पूर्णतः अनाच्छादित हो जाता है, और शेष समय में वह अंशतः अनाच्छादित और अंशतः अनाच्छादित रहता है । इनमें से जो पुर्वराहु है, वह जघन्यतः छह मास में चन्द्र और सूर्य को आवृत्त करता है और उत्कृष्ट बयालीस मास में चन्द्र को और अड़तालीस वर्ष में सूर्य को ढंकता है। सूत्र- ५४७, ५४८
भगवन् ! चन्द्रमा को चन्द्र शशी है, ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! ज्योतिषियों के इन्द्र, ज्योतिषियों के राजा चन्द्र का विमान मृगांक है, उसमें कान्त देव तथा कान्ता देवियाँ हैं और आसन, शयन, स्तम्भ, भाण्ड, पात्र आदि उपकरण (भी) कान्त हैं । स्वयं ज्योतिष्कों का इन्द्र, ज्योतिष्कों का राजा चन्द्र भी सौम्य, कान्त, सुभग, प्रिय-दर्शन और सुरूप है, इसलिए, हे गौतम ! चन्द्रमा को शशी कहा जाता है।
भगवन् ! सूर्य को-सूर्य आदित्य है, ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! समय अथवा आवलिका यावत् अथवा अवसर्पिणी या उत्सर्पिणी (इत्यादि काल) की आदि सूर्य से होती है, इसलिए इसे आदित्य कहते हैं।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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