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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-८८५ भगवन् ! शरीर कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के औदारिक, वैक्रिय, यावत् कार्मणशरीर । यहाँ प्रज्ञापनासूत्र का शरीरपद समग्र कहना चाहिए। सूत्र-८८६ भगवन् ! जीव सैज (सकम्प) हैं अथवा निरेज (निष्कम्प) हैं ? गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी हैं भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे हैं यथा-संसार-समापन्नक और असंसारसमापन्नक । उनमें से जो असंसार-समापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं । सिद्ध जीव दो प्रकार के कहे हैं । यथा-अनन्तरसिद्ध और परम्पर-सिद्ध । जो परम्पर-सिद्ध हैं, वे निष्कम्प हैं, और जो अनन्तर-सिद्ध हैं, वे सकम्प हैं। भगवन् ! वे देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक हैं ? गौतम ! वे देशकम्पक नहीं, सर्वकम्पक हैं । जो संसार-समापन्नक जीव हैं, वे दो प्रकार के कहे हैं । यथा-शैलेशी-प्रतिपन्नक और अशैलेशी-प्रतिपन्नक । जो शैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे निष्कम्प हैं, किन्तु जो अशैलेशी-प्रतिपन्नक हैं, वे सकम्प हैं । भगवन् ! वे देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक ? गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं। इस कारण से हे गौतम ! यावत् वे निष्कम्प भी हैं। भगवन् ! नैरयिक देशकम्पक हैं या सर्वकम्पक हैं ? गौतम ! वे देशकम्पक भी हैं और सर्वकम्पक भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ? गौतम ! नैरयिक दो प्रकार के कहे हैं । यथा-विग्रहगति-समापन्नक और अविग्रहगति-समापन्नक । उनमें से जो विग्रहगति-समापन्नक हैं, वे सर्वकम्पक हैं और जो अविग्रहगति-समापन्नक हैं, वे देशकम्पक हैं । इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए। सूत्र - ८८७ भगवन् ! परमाणु-पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं अथवा अनन्त हैं ? गौतम ! संख्यात नहीं, असंख्यात भी नहीं, किन्तु अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक जानना । भगवन् ! आकाश के एक प्रदेश में रहे हए पुदगल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! अनन्त हैं । इसी प्रकार यावत् असंख्येय प्रदेशों में रहे हए पुद्गलों तक जानना चाहिए । भगवन् ! एक समय की स्थिति वाले पुद्गल संख्यात हैं, असंख्यात हैं या अनन्त हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् असंख्यात-समय की स्थिति वाले पुद्गलों के विषय में भी कहना चाहिए भगवन् ! एकगुण काले पुद्गल संख्यात हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पूर्ववत् जानना । इसी प्रकार यावत् अनन्तगुण काले पुद्गलों के विषय में जानना । इसी प्रकार शेष वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले पुद्गलों के विषय में भी अनन्तगुण रूक्ष पर्यन्त जानना।। भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! द्विप्रदेशी स्कन्धों से परमाणु पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं । भगवन् ! द्विप्रदेशी और त्रिप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध से द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं | इस गमक अनुसार यावत् दशप्रदेशी स्कन्धों से नवप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं । भगवन् ! दश-प्रदेशी स्कन्धों और संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे विशेषाधिक हैं? गौतम ! दशप्रदेशिक स्कन्धों से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं । भगवन् ! इन संख्यातप्रदेशी स्कन्धों और असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प हैं ? गौतम ! संख्यातप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं । भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ से कौन किससे अल्प हैं ? गौतम ! अनन्त-प्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्यार्थ से बहुत हैं। भगवन् ! परमाणु-पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्धों में प्रदेशार्थरूप से कौन किससे बहुत हैं ? गौतम ! परमाणुपुद्गलों से द्विप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं । इस प्रकार इस गमक अनुसार यावत् नवप्रदेशी स्कन्धों से दशप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं । इस प्रकार दशप्रदेशी स्कन्धों से संख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं । संख्यातप्रदेशी स्कन्धों से असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध प्रदेशार्थरूप से बहुत हैं । भगवन् ! असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 186
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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