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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/सूत्रांक ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ यावत् कदाचित् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ हैं । विधानादेश से कृतयुग्मप्रदेशावगाढ़ हैं, यावत् कल्योज-प्रदेशावगाढ़ भी हैं । एकेन्द्रिय जीवों और सिद्धों को छोड़कर शेष सभी जीव इसी प्रकार नैरयिक के समान कदाचित् कृतयुग्म-प्रदेशावगाढ़ आदि होते हैं । सिद्धों और एकेन्द्रिय जीवों का कथन सामान्य जीवों के समान है।
भगवन् ! (एक) जीव कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कृतयुग्म-समय की स्थिति वाला है, किन्तु योज-समय, द्वापरयुग्मसमय अथवा कल्योज-समय की स्थिति वाला नहीं है । भगवन् ! (एक) नैरयिक कतयग्म-समय की स्थिति वाला है ? गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाला है । इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक । सिद्ध का कथन जीव के समान है।
भगवन् ! (अनेक) जीव कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे ओघादेश से तथा विधानादेश से भी कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं। भगवन् ! (अनेक) नैरयिक कृतयुग्म-समय की स्थिति वाले हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म यावत् कदाचित् कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं। विधानादेश से कृतयुग्म यावत कल्योज-समय की स्थिति वाले हैं। वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना चाहिए। सिद्धों का कथन सामान्य जीवों के समान है।
भगवन् ! जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि पृच्छा । गौतम ! जीव प्रदेशों की अपेक्षा न तो कृतयुग्म हैं और यावत् न कल्योज है, किन्तु शरीरप्रदेशों की अपेक्षा कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है । यावत् वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए । यहाँ सिद्ध के विषय में प्रश्न नहीं करना चाहिए, (क्योंकि वे अरूपी हैं)। सूत्र - ८८४
भगवन् ! (अनेक) जीव काले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! जीव-प्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से भी और विधानादेश से भी न तो कृतयुग्म हैं यावत् न कल्योज हैं । शरीरप्रदेशों की अपेक्षा ओघादेश से कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं, विधानादेश से वे कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं । वैमानिकों तक इसी प्रकार का कथन समझना चाहिए। इसी प्रकार एकवचन और बहुवचन से नीले वर्ण के पर्यायों की अपेक्षा भी कहना चाहिए । इसी प्रकार यावत् रूक्ष स्पर्श के पर्यायों की अपेक्षा से भी पूर्ववत् कथन करना चाहिए
भगवन् ! (एक) जीव आभिनिबोधिकाज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कदाचित् कृतयुग्म है, यावत् कदाचित् कल्योज है । इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक पर्यन्त । भगवन् ! (बहुत) जीव आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? गौतम ! ओघादेश से वे कदाचित् कृतयुग्म हैं, यावत् कदाचित् कल्योज हैं । विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं, यावत् कल्योज भी हैं । इसी प्रकार एकेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिकों तक । इसी प्रकार श्रुतज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी जानना । अवधिज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा भी यही जानना । विशेष यह कि विकलेन्द्रियों में अवधिज्ञान नहीं होता है । मनःपर्यवज्ञान के पर्यायों के विषय में भी यही कथन, किन्तु वह औधिक जीवों और मनुष्यों को ही होता है, शेष दण्डकों में नहीं पाया जाता।
भगवन् ! (एक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वह कृतयुग्म है, किन्तु त्र्योज, द्वापरयुग्म का कल्योज नहीं है । इसी प्रकार मनुष्य एवं सिद्ध के विषय में भी जानना । भगवन् ! (अनेक) जीव केवलज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! ओघादेश से और विधानादेश से भी वे कृतयुग्म हैं । इसी प्रकार (अनेक) मनुष्यों तथा सिद्धों के विषय में भी समझना चाहिए।
भगवन् ! (एक) जीव मतिअज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ? आभिनिबोधिकज्ञान के पर्यायों के समान यहाँ भी दो दण्डक कहने चाहिए । इसी प्रकार श्रुतअज्ञान एवं विभंगज्ञान के पर्यायों का भी कथन करना चाहिए । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के पर्यायों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए, किन्तु जिसमें जो पाया जाता है, वह कहना । केवलदर्शन के पर्यायों का कथन केवलज्ञान के पर्यायों के समान ।
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मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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