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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/ वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक चाहिए । विशेष यह कि तिर्यंच की उत्पत्ति का निषेध करना चाहिए । यावत्-भगवन् ! संख्यात वर्ष की आयु वाला पर्याप्त संज्ञी मनुष्य कितने काल की स्थिति वाले आनतदेवों में उत्पन्न होता है ? (गौतम !) सहस्रार देवों में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों की वक्तव्यता के समान कहना चाहिए । विशेषता यह कि इसमें प्रथम के तीन संहनन होते हैं । शेष पूर्ववत् अनुबन्धपर्यन्त । भवादेश से-जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट सात भव ग्रहण करता है । कालादेश से-जघन्य दो वर्षपृथक्त्व अधिक अठारह सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक सत्तावन सागरोपम; इसी प्रकार शेष आठ गमक कहने चाहिए । परन्तु स्थिति और संवेध (पृथक्-पृथक्) जानना चाहिए । शेष पूर्ववत् । इसी प्रकार यावत् अच्यत देव-पर्यन्त जानना चाहिए। किन्त स्थिति और संवेध (भिन्न-भिन्न) कहना चाहिए। आनतादि चार देवलोकों में प्रथम के तीन संहनन वाले उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! ग्रैवेयकदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । यही वक्तव्यता कहनी चाहिए । विशेष - इनमें प्रथम के दो संहनन वाले उत्पन्न होते हैं तथा स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए । भगवन ! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पूर्वोक्त सारी वक्तव्यता अनुबन्ध तक जानना। विशेष-इनमें प्रथम संहनन वाले उत्पन्न होते हैं । शेष पूर्ववत् । भवादेश से-जघन्य तीन भव और उत्कृष्ट पाँच भव तथा कालादेश से-जघन्य दो वर्षपृथक्त्व-अधिक ३१ सागरोपम और उत्कृष्ट तीन पूर्वकोटि अधिक ६६ सागरोपम । शेष आठ गमक की इसी प्रकार कहने चाहिए । विशेष यह है कि इनमें स्थिति और संवेध (भिन्न) जान लेना चाहिए । मनुष्य के नौ ही गमकों में, ग्रैवेयक में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों के गमकों के समान कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि विजय आदि में प्रथम संहनन वाला ही उत्पन्न होता है । भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध देव कहाँ से आकर उत्पन्न होता है ? इसका उपपात आदि विजय आदि के समान है । यावत्
भगवन् ! वे कितने काल की स्थिति वाले सर्वार्थसिद्ध देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति वाले । शेष वक्तव्यता विजयादि देवों के समान है । विशेषता यह है कि भवादेश से-तीन भवों का ग्रहण होता है, कालादेश से-जघन्य दो वर्षपृथक्त्व-अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम । यदि वह स्वयं जघन्यकाल की स्थिति वाला हो और सर्वार्थसिद्ध देवों में उत्पन्न हो, तो भी यही पूर्वोक्त वक्तव्यता जानना । विशेषता यह है कि इसकी अवगाहना रत्नीपृथक्त्व और स्थिति वर्ष-पृथक्त्व होती है | संवेध (इसका अपना) जानना चाहिए। यदि वह स्वयं उत्कृष्ट काल की स्थिति वाला हो तो यही पूर्वोक्त वक्तव्यता । किन्तु इसकी अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष है । इसकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट पूर्वकोटि है । शेष सब पूर्ववत् यावत् भवादेश तक । काल की अपेक्षा से-जघन्य दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम और उत्कृष्ट भी दो पूर्वकोटि अधिक तैंतीस सागरोपम । सर्वार्थसिद्ध देवों में ये तीन ही गमक होते हैं। हे भगवन ! यह इसी प्रकार है
शतक-२४ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् (भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद'
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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