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________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सम्बन्ध में पूर्वोक्त नौ ही गमक इसी प्रकार कहना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और अनुबन्ध जघन्य सातिरेक एक पल्योपम और उत्कृष्ट सातिरेक दो सागरोपम होता है। शेष पूर्ववत् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-२४ - उद्देशक-१३ सूत्र-८४९ भगवन् ! अप्कायिक जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक-उद्देशक अनुसार कहना । यावत् भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले अप्कायिक में उत्पन्न होता है ? गौतम ! जघन्य अन्त-र्मुहूर्त की और उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की । इस प्रकार यह समग्र उद्देशक पृथ्वीकायिक के समान है । विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध जान लेना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-२४ - उद्देशक-१४ सूत्र-८५० भगवन् ! तेजस्कायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? पृथ्वीकायिक-उद्देशक की तरह कहना । विशेष यह है कि इसकी स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना । तेजस्कायिक जीव देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-२४ - उद्देशक-१५ सूत्र-८५१ भगवन् ! वायुकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । तेजस्कायिक-उद्देशक के समान हैं। स्थिति और संवेध तेजस्कायिक से भिन्न समझना चाहिए। शतक-२४- उद्देशक-१६ सूत्र-८५२ भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीव, कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । यह उद्देशक पृथ्वीकायिकउद्देशक के समान है । विशेष यह है कि जब वनस्पतिकायिक जीव, वनस्पतिकायिक जीवों में उत्पन्न होते हैं, तब पहले, दूसरे, चौथे और पाँचवें गमक में परिमाण यह है कि प्रतिसमय निरन्तर वे अनन्त जीव उत्पन्न होते हैं। भव की अपेक्षा से वे जघन्य दो भव और उत्कृष्ट अनन्त भव ग्रहण करते हैं, तथा काल की अपेक्षा से जघन्य दो अन्त-र्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्तकाल । शेष पाँच गमकों में उसी प्रकार आठ भव जानने चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और संवेध पहले से भिन्न जानना चाहिए। शतक-२४ - उद्देशक-१७ सूत्र - ८५३ भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं; इत्यादि, यावत्-हे भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, कितने काल की स्थिति वाले द्वीन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! यहाँ पूर्वोक्त पृथ्वीकायिक की वक्तव्यता के समान, यावत् कालावेश से-जघन्य दो अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट संख्यात भव । पृथ्वीकायिक के साथ द्वीन्द्रिय का संवेध अनुसार पहला, दूसरा, चौथा और पाँचवा इन चार गमकों में संवेध जानना चाहिए । शेष पाँच गमकों में उसी प्रकार आठ भव होते हैं । पंचेन्द्रिय-तिर्यंचों और मनुष्यों के साथ पूर्वोक्त आठ भव जानना चाहिए । देवों से च्यवकर आया हुआ जीव द्वीन्द्रिय में उत्पन्न नहीं होता । यहाँ स्थिति और संवेध पहले से भिन्न है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-२४ - उद्देशक-१८ सूत्र-८५४ भगवन् ! त्रीन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । द्वीन्द्रिय-उद्देशक के समान त्रीन्द्रियों के विषय में भी कहना चाहिए । विशेष यह है कि स्थिति और संवेध (भिन्न) समझना चाहिए । तेजस्कायिकों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट २०८ रात्रि-दिवस का और द्वीन्द्रियों के साथ तीसरे गमक में उत्कृष्ट १९६ रात्रि-दिवस अधिक मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 164
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
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