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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-२१- वर्ग-२ सूत्र-८१५
भगवन् ! कलाय, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, निष्पाव, कुलथ, आलिसंदक, सटिन और पलिमंथक; इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! शालि आदि के अनुसार यहाँ भी मूल आदि दस उद्देशक कहना।
शतक-२१- वर्ग-३ सूत्र - ८१६
भगवन् ! अलसी, कुसुम्ब, कोद्रव, कांग, राल, तूअर, कोदूसा, सण, सर्षप तथा मूलक बीज, इन वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम!) शालि वर्ग के समान कहना।
शतक-२१ - वर्ग-४ सूत्र-८१७
भगवन् ! बाँस, वेणु, कनक, कविंश, चारुवंश, उड़ा, कुड़ा, विमा, कण्डा, वेणुका और कल्याणी, इन सब वनस्पतियों के मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम!) शालि-वर्ग के समान मूल आदि दश उद्देशक कहना चाहिए । विशेष यह है कि देव यहाँ किसी स्थान में उत्पन्न नहीं होते । सर्वत्र तीन लेश्याएं और उनके छब्बीस भंग जानने चाहिए। शेष पूर्ववत् ।
शतक-२१ - वर्ग-५ सूत्र-८१८
भगवन् ! इक्षु, इक्षुवाटिका, वीरण, इक्कड़, भमास, सुंठी, शर, वेत्र, तिमिर, सतबोरग और नल, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? वंशवर्ग के मूलादि के समान यहाँ भी कहना । विशेष यह है कि स्कन्धोद्देशक में देव भी उत्पन्न होते हैं, अतः उनके चार लेश्याएं होती हैं (इत्यादि)।
शतक-२१ - वर्ग-६ सूत्र-८१९
भगवन् ! सेडिय, भंतिय, कौन्तिय, दर्भ-कुश, पर्वक, पोदेइल, अर्जुन, आषाढ़क, रोहितक, मुतअ, खीर, भुस, एरण्ड, कुरुकुन्द, करकर, झूठ, विभंगु, मधुरयण, थुरग, शिल्पिक और सुंकलितृण, इन सब वनस्पतियों के मूलरूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान कहना चाहिए।
शतक-२१ - वर्ग-७ सूत्र-८२०
भगवन् ! अभ्ररुह, वायाण, हरीतक, तंदुलेय्यक, तृण, वत्थुल, बोरक, मार्जाणक, पाई, बिल्ली, पालक, दगपिप्पली, दर्वी, स्वस्तिक, शाकमण्डुकी, मूलक, सर्षप, अम्बिलशाक, जीयन्तक, इन सब वनस्पतियों के मूल रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! चतुर्थ वंशवर्ग के समान मूलादि दश उद्देशक कहना
शतक-२१ - वर्ग-८ सूत्र - ८२१
भगवन् ! तुलसी, कृष्णदराल, फणेज्जा, अज्जा, भूयणा, चोरा, जीरा, दमणा, मरुया, इन्दीवर और शतपुष्प इन सबके मूल के रूप में जो जीव उत्पन्न होते हैं, वे कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? (गौतम !) चौथे वंशवर्ग के समान यहाँ भी मूलादि दश उद्देशक कहने चाहिए । इस प्रकार आठ वर्गों में अस्सी उद्देशक होते हैं।
शतक-२१ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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