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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-८०५
भगवन् ! नैरयिक कतिसंचित हैं, अकतिसंचित हैं अथवा अवक्तव्यसंचित ? गौतम ! तीनों हैं । भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा गया है ? गौतम ! जो नैरयिक संख्यात प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं, जो नैरयिक असंख्यात प्रवेश करते हैं, वे अकतिसंचित हैं और जो नैरयिक एक-एक करके) प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक कतिसंचित हैं, इत्यादि प्रश्न । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव कतिसंचित भी नहीं और अवक्तव्यसंचित भी नहीं किन्तु अकतिसंचित हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव एक साथ असंख्य प्रवेशनक से प्रवेश करते हैं, इसलिए कहा जाता है कि वे अकतिसंचित हैं । इसी प्रकार वनस्पति कायिक तक (जानना) द्वीन्द्रियों से लेकर वैमानिको पर्यन्त नैरयिकों के समान (कहना)।
भगवन् ! सिद्ध कतिसंचित हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न । गौतम ! सिद्ध कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित हैं, किन्तु अकतिसंचित नहीं हैं। भगवन् ! यह किस कारण से कहा जाता है ? गौतम ! जो सिद्ध संख्यातप्रदेशक से प्रवेश करते हैं, वे कतिसंचित हैं और जो सिद्ध एक-एक करके प्रवेश करते हैं, वे अवक्तव्यसंचित हैं।
भगवन् ! इन कतिसंचित, अकतिसंचित और अवक्तव्यसंचित नैरयिकों में से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े अवक्तव्यसंचित नैरयिक हैं, उनसे कतिसंचित नैरयिक संख्यातगुणे हैं और अकतिसंचित उनसे असंख्यातगणे हैं । एकेन्द्रिय जीवों के सिवाय वैमानिकों तक का इसी प्रकार अल्पबहुत्व कहना । भगवन् ! कतिसंचित और अवक्तव्यसंचित सिद्धों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े कतिसंचित सिद्ध होते हैं, उनसे अवक्तव्यसंचित सिद्ध संख्यातगुणे हैं।
भगवन् ! नैरयिक षट्कसमर्जित हैं, नो-षट्कसमर्जित हैं, (एक) षट्क और नोषट्क-समर्जित हैं, अथवा अनेक षट्कसमर्जित हैं या अनेक षट्कसमर्जित-एक नो-षट्कसमर्जित हैं ? गौतम ! नैरयिक षट्कसमर्जित भी हैं, यावत् एक नोषट्कसमर्जित भी हैं। भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जो नैरयिक छह की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक षट्कसमर्जित हैं । जो नैरयिक जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट पाँच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नो-षट्कसमर्जित हैं । जो नैरयिक एक षट्क संख्या से और अन्य जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पाँच की संख्या में प्रवेश करते हैं, वे षटक और नो-षट्कसमर्जित हैं। जो नैरयिक अनेक षट्क संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक अनेक षटकसमर्जित हैं । जो नैरयिक अनेक षटक तथा जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट पाँच संख्या में प्रवेश करते हैं, वे नैरयिक अनेक षट्क और एक नो-षट्कसमर्जित हैं । इसलिए कहा गया है कि यावत् अनेक षट्क और एक नो-षटकसमर्जित भी होते हैं।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव षट्कसमर्जित हैं ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् । गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव न तो षट् कसमर्जित हैं, न नो-षट्कसमर्जित हैं और न एक षट्क और एक नो-षट्क से समर्जित हैं; किन्तु अनेक षट्कसमर्जित हैं तथा अनेक षट्क और एक नो-षट्क से समर्जित भी हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है? गौतम ! जो पृथ्वीकायिक जीव अनेक षट्क से प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्कसमर्जित हैं तथा जो पृथ्वी-कायिक अनेक षट्क से तथा जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट पाँच संख्यात में प्रवेश करते हैं, वे अनेक षट्क और एक नोषट्कसमर्जित कहलाते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक तक समझना और द्वीन्द्रिय से लेकर वैमानिकों तक पूर्ववत् जानना । सिद्धों का कथन नैरयिकों के समान है । भगवन् ! षट्कसमर्जित, नो-षट्क-समर्जित, एक षट्क एक नो-षट् कसमर्जित अनेक षट्कसमर्जित तथा अनेक षट्क एक नो-षट्कसमर्जित नैरयिकों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे कम एक षट्कसमर्जित नैरयिक हैं, नो-षट्कसम-र्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं, एक षट्क और नो-षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं, अनेक षट्क-समर्जित नैरयिक उनसे असंख्यातगुणे हैं, और अनेक षट्क और एक नो-षट्कसमर्जित नैरयिक उनसे संख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक समझना । भगवन् ! अनेक षट्कसमर्जित और अनेक षट्क तथा नो-षट्क-समर्जित पृथ्वीकायिकों में कौन किससे
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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