SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2' शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक सूत्र-७९६ भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणीकाल में आप देवानुप्रिय का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहेगा ? गौतम ! इस जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में मेरा पूर्वश्रुतगत एक हजार वर्ष तक रहेगा । भगवन् ! जम्बूद्वीप के भारतवर्ष में, इस अवसर्पिणीकाल में अवशिष्ट अन्य तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत कितने काल तक रहा था? गौतम ! कितने ही तीर्थंकरों का पूर्वगतश्रुत संख्यात काल तक रहा और कितने ही तीर्थंकरों का असंख्यात काल तक रहा। सूत्र-७९७ भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में इस अवसर्पिणी काल में आप देवानुप्रिय का तीर्थ कितने काल तक रहेगा ? गौतम! इक्कीस हजार वर्ष तक रहेगा। सूत्र - ७९८ हे भगवन ! भावी तीर्थंकरोंमें से अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ कितने काल तक अविच्छिन्न रहेगा ? गौतम ! कौशलिक ऋषभदेव, अरहन्त का जितना जिनपर्याय है, उतने वर्ष भावी तीर्थंकरोंमें अन्तिम तीर्थंकर का तीर्थ रहेगा। सूत्र - ७९९ भगवन् ! तीर्थ को तीर्थ कहते हैं अथवा तीर्थंकर को तीर्थ कहते हैं ? गौतम ! अर्हन तो अवश्य तीर्थंकर हैं, किन्तु तीर्थ चार प्रकार के वर्णों से युक्त श्रमणसंघ है। यथा-श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं। सूत्र-८०० भगवन् ! प्रवचन को ही प्रवचन कहते हैं, अथवा प्रवचनी को प्रवचन कहते हैं ? गौतम ! अरिहन्त तो अवश्य प्रवचनी हैं, किन्तु द्वादशांग गणिपिटक प्रवचन हैं, यथा-आचारांग यावत् दृष्टिवाद । भगवन् ! जो ये उग्रकुल, भोगकुल, राजन्यकुल, इक्ष्वाकुकुल, ज्ञातकुल और कौरव्यकुल हैं, वे यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं? हाँ, गौतम! करते हैं; अथवा कितने ही किन्हीं देवलोकों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं। भगवन् ! देवलोक कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! चार प्रकार के हैं । भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। शतक-२० - उद्देशक-९ सूत्र - ८०१ भगवन् ! चारण कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के, यथा-विद्याचारण और जंघाचारण । भगवन् विद्याचारण मुनि को विद्याचारण क्यों कहते हैं ? अन्तर-रहित छ?-छ? के तपश्चरणपूर्वक पूर्वश्रुतरूप विद्या द्वारा तपोलब्धि को प्राप्त मुनि को विद्याचारणलब्धि नामकी लब्धि उत्पन्न होती है । इस कारण से यावत् वे विद्याचारण कहलाते हैं । भगवन् ! विद्याचारण की शीघ्र गति कैसी होती है ? और उसका गति-विषय कितना शीघ्र होता है ? गौतम! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप, जो सर्वद्वीपों में (आभ्यन्तर है,) यावत् जिसकी परिधि (तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से) कुछ विशेषाधिक है, उस सम्पूर्ण जम्बूद्वीप के चारों ओर कोई महर्द्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न देव यावत्- यह चक्कर लगाकर आता हूँ यों कहकर तीन चुटकी बजाए उतने समय में, तीन बार चक्कर लगाकर आ जाए, ऐसी शीघ्र गति विद्याचारण की है। उसका इस प्रकार का शीघ्रगति का विषय कहा है । भगवन् ! विद्याचारण की तीरछी गति का विषय कितना कहा है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उड़ान से मानुषोत्तरपर्वत पर समवसरण करता है। फिर वहाँ चैत्यों (जिनालयों) की स्तुति करता है । तत्पश्चात् वहाँ से दूसरे उत्पात में नन्दीश्वरद्वीप में स्थिति करता है, फिर वहाँ चैत्यों (जिनालयों) की वन्दना (स्तुति) करता है, तत्पश्चत् वहाँ से (एक ही उत्पात में) वापस लौटता है और यहाँ आ जाता है। यहाँ आकर चैत्यवन्दन करता है। भगवन् ! विद्याचारण की ऊर्ध्वगति का विषय कितना कहा गया है ? गौतम ! वह यहाँ से एक उत्पात से नन्दनवन में समवसरण (स्थिति) करता है । वहाँ ठहरकर वह चैत्यों की वन्दना करता है । फिर वहाँ से दूसरे उत्पात में मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 137
SR No.034672
Book TitleAgam 05 Bhagwati Sutra Part 02 Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 05, & agam_bhagwati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy