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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक एकदेश स्निग्ध, एकदेश रूक्ष; इस प्रकार लघु के साथ भी पूर्ववत् ६४ भंग । कदाचित् सर्वशीत, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इस प्रकार शीत के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्वउष्ण, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार उष्ण के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्वस्निग्ध, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण होता है; इस प्रकार स्निग्ध के साथ भी ६४ भंग । कदाचित् सर्व-रूक्ष, एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और एकदेश उष्ण; इस प्रकार रूक्ष के साथ भी ६४ भंग । यावत् सर्वरूक्ष, अनेकदेश कर्कश, अनेकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, अनेकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण होता है । इस प्रकार ये ५१२ भंग सप्तस्पर्शी के हैं।
यदि वह आठ स्पर्श वाला होता है, तो कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष होता है । कदाचित एकदेश कर्कश, एकदेश मद, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत और अनेकदेश उष्ण तथा एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, इत्यादि चार भंग कहने चाहिए । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इत्यादि चार भंग । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु, अनेकदेश शीत, अनेकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, ये चार भंग । इस प्रकार १६ भंग होते हैं। अथवा कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इस प्रकार गुरु पद को एकवचन में और लघु पद को बहुवचन में रखकर पूर्ववत् १६ भंग है । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, एकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध
और एकदेश रूक्ष, इसके भी १६ भंग हैं । कदाचित् एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, अनेकदेश गुरु, अनेकदेश लघु, एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष; इसके भी १६ भंग हैं । इस प्रकार बादर परिणाम वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के १२९६ भंग हैं। सूत्र - ७८८
भगवन् ! परमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा-द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, कालपरमाणु और भावपरमाणु । भगवन् ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा-अच्छेद्य, अभेद्य, अदाह्य और अग्राह्य । भगवन् ! क्षेत्रपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा-अनर्द्ध, अमध्य, अप्रदेश और अविभाज्य । भगवन् ! कालपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा-अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श | भगवन् ! भावपरमाणु कितने प्रकार का है ? गौतम ! चार प्रकार का, यथा-वर्णवान, गन्धवान्, रसवान् और स्पर्शवान् । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-२०- उद्देशक-६ सूत्र - ७८९
भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी और शर्कराप्रभापृथ्वी के बीच में मरणसमुद्घात करके सौधर्मकल्प में पृथ्वीकायिक के रूप में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करते हैं, अथवा पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होते हैं; इत्यादि वर्णन सत्तरहवे शतक के छठे उद्देशक के अनुसार, विशेष यह है कि वहाँ पृथ्वीकायिक सम्प्राप्त करते हैं, -पुद्गल-ग्रहण करते हैं ऐसा कहा है, और यहाँ आहार करते हैं -ऐसा कहना । शेष सब पूर्ववत् । भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा पृथ्वी के मध्य में मरणसमुद्घात करके ईशानकल्प में पृथ्वीकायिकरूप से उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करते हैं या पहले आहार करके पीछे उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक कहना।
भगवन् ! जो पृथ्वीकायिक जीव शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा के मध्य में मरण-समुद्घात करके सौधर्मकल्प में यावत् ईषत्प्राग्भारापृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य हैं, वे पहले उत्पन्न होकर पीछे आहार करते हैं, या पहले आहार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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