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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र- ५, 'भगवती / व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक / वर्ग / उद्देशक / सूत्रांक तीन प्रकार की मति अज्ञाननिर्वृत्ति, श्रुत- अज्ञाननिवृत्ति और विभंगज्ञाननिर्वृत्ति। इस प्रकार वैमानिकों पर्यन्त, जिसके जितने अज्ञान हों, (तदनुसार अज्ञाननिर्वृत्ति कहनी चाहिए)।
भगवन् ! योगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम ! तीन प्रकार की - मनोयोगनिर्वृत्ति, वचनयोगनिर्वृत्ति और काययोगनिर्वृत्ति । इस प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने योग हों, (तदनुसार उतनी योगनिवृत्ति कही चाहिए) । भगवन् ! उपयोगनिर्वृत्ति कितने प्रकार की कही गई है ? गौतम! दो प्रकार की साकारोपयोग-निवृत्ति और अनाकारोपयोग-निवृत्ति । इस प्रकार उपयोगनिर्वृत्ति वैमानिकों पर्यन्त ( कहना चाहिए) ।
सूत्र. ७७१-७७३
१. जीव, २. कर्मप्रकृति, ३. शरीर, ४. सर्वेन्द्रिय, ५. भाषा, ६. मन, ७. कषाय । तथा ८. वर्ण, ९. गंध, १०. रस, ११. स्पर्श, १२. संस्थान, १३. संज्ञा, १४. लेश्या, १५. दृष्टि, १६. ज्ञान, १७. अज्ञान, १८. उपयोग और १९. योग, (इन सबकी निर्वृत्ति का कथन इस उद्देशक में किया गया है) । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - १९- उद्देशक- ९
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सूत्र - ७७४
भगवन् ! करण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का द्रव्यकरण, क्षेत्रकरण, कालकरण, भवकरण और भावकरण । भगवन् ! नैरयिकों के कितने करण हैं ? गौतम ! पाँच प्रकार के यथा-द्रव्यकरण यावत् भावकरण । वैमानिकों तक कहना ।
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भगवन्। शरीरकरण कितने प्रकार का कहा गया है? गौतम पाँच प्रकार का औदारिकशरीरकरण यावत् कार्मणशरीरकरण । इसी प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितने शरीर हों उसके उतने शरीरकरण कहने चाहिए | भगवन् ! इन्द्रियकरण कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! पाँच प्रकार का श्रोत्रेन्द्रियकरण यावत् स्पर्शेन्द्रियकरण । इसी प्रकार वैमानिकों तक जिसके जितनी इन्द्रियाँ हों उसके उतने इन्द्रियकरण कहने चाहिए।
इसी प्रकार इसी क्रम से चार प्रकार का भाषाकरण, चार प्रकार का मनःकरण, चार प्रकार का कषायकरण सात प्रकार का समुद्घात करण, चार प्रकार का संज्ञाकरण, छह प्रकार का लेश्याकरण, तीन प्रकार का दृष्टिकरण और तीन प्रकार का वेदकरण है।
प्राणातिपातकरण कितने प्रकार का है? भगवन्। पाँच प्रकार का एकेन्द्रियप्राणातिपातकरण यावत् पंचेन्द्रियप्राणातिपातकरण । इस प्रकार वैमानिकों तक कहना । भगवन् ! पुद्गलकरण कितने प्रकार का है ? गौतम ! पाँच प्रकार का-वर्णकरण, गन्धकरण, रसकरण, स्पर्शकरण और संस्थानकरण । भगवन् ! वर्णकरण कितने प्रकार का है? गौतम पाँच प्रकार का कृष्णवर्णकरण यावत् शुक्लवर्णकरण । इसी प्रकार पुद्गलकरण के वर्णादि-भेद कहना यथा दो प्रकार का गन्धकरण, पाँच प्रकार का रसकरण एवं आठ प्रकार का स्पर्शकरण। भगवन् । संस्थान करण कितने प्रकार का है ? पाँच प्रकार का परिमण्डलसंस्थानकरण यावत् आयतसंस्थानकरण ।
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सूत्र - ७७५ ७७७
द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, भव, शरीर, करण, इन्द्रियकरण, भाषा, मन, कषाय और समुद्घात् । तथा-संज्ञा, लेश्या, दृष्टि, वेद, प्राणातिपातकरण, पुद्गलकरण, वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, संस्थान इनका कथन इस उद्देशक में हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
शतक- १९ उद्देशक - १०
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सूत्र - ७७८
भगवन्। क्या सभी वाणव्यन्तर देव समान आहार वाले होते हैं? इत्यादि प्रश्न (गौतम) सोलहवें शतक के द्वीपकुमारोद्देशक के अनुसार अल्पर्द्धिक- पर्यन्त जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।
शतक-१८ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " ( भगवती २ ) आगमसूत्र - हिन्द- अनुवाद”
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