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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-2'
शतक/वर्ग/उद्देशक/ सूत्रांक
शतक-१८ सूत्र - ७२१
अठारहवें शतक में दस उद्देशक हैं । यथा-प्रथम, विशाखा, माकन्दिक, प्राणातिपात, असुर, गुड़, केवली, अनगार, भाविक तथा सोमिल ।
शतक-१८ - उद्देशक-१ सूत्र-७२२
उस काल उस समयमें राजगृह नगरमें यावत् पूछा-भगवन् ! जीव, जीवभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है। इस प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना । भगवन् ! सिद्ध-जीव, सिद्धभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! अनेक जीव, जीवत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं अथवा अप्रथम हैं ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम हैं । इस प्रकार अनेक वैमानिकों तक (जानना) । भगवन् ! सभी सिद्ध जीव, सिद्धत्व की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं।
भगवन् ! आहारकजीव, आहारकभाव से प्रथम है या अथवा अप्रथम है ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम हैं। इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक जानना चाहिए । बहुवचन में भी इसी प्रकार समझना चाहिए। भगवन्! अनाहारक जीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! कदाचित् प्रथम होता है, कदाचित् अप्रथम होता है । भगवन् ! नैरयिक जीव, अनाहारकभाव से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह प्रथम नहीं, अप्रथम है। इसी प्रकार नैरयिक से लेकर वैमानिक तक प्रथम नहीं, अप्रथम जानना चाहिए । सिद्धजीव, अनाहा-रकभाव की अपेक्षा से प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! अनेक अनाहारकजीव, अनाहारकभाव की अपेक्षा से प्रथम हैं या अप्रथम हैं ? गौतम ! वे प्रथम मी हैं और अप्रथम भी हैं । इसी प्रकार अनेक नैरयिक जीवों से लेकर अनेक वैमानिकों तक प्रथम नहीं, अप्रथम हैं। सभी सिद्ध प्रथम हैं, अप्रथम नहीं हैं। इसी प्रकार प्रत्येक दण्डक के विषय में इसी प्रकार पृच्छा कहना चाहिए।
भवसिद्धिक जीव एकत्व-अनेकत्व दोनों प्रकार से आहारक जीव के समान प्रथम नहीं, अप्रथम हैं, इत्यादि कथन करना चाहिए । इसी प्रकार अभवसिद्धिक एक या अनेक जीव के विषय में भी जान लेना चाहिए । भगवन्! नो-भवसिद्धिक-नो-अभवसिद्धिक जीव नोभवसिद्धिक-नो-अभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है? गौतम ! वह प्रथम है, अप्रथम नहीं है । भगवन् ! नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक सिद्धजीव नोभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिकभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? पूर्ववत् समझना चाहिए । इसी प्रकार (जीव और सिद्ध) दोनों के बहुवचन सम्बन्धी प्रश्नोत्तर भी समझ लेने चाहिए।
भगवन् ! संज्ञीजीव, संज्ञीभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम ? गौतम ! प्रथम नहीं, अप्रथम है । इसी प्रकार विकलेन्द्रिय को छोड़कर वैमानिक तक जानना । बहुवचन-सम्बन्धी भी इसी प्रकार जानना । असंज्ञीजीवों की एकवचन-बहुवचन-सम्बन्धी (वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए) । विशेष इतना है कि यह कथन वाणव्यन्तरों तक ही (जानना) । एक या अनेक नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्ध, नोसंजी-नोअसंज्ञीभाव की अपेक्षा प्रथम है, अप्रथम नहीं है।
भगवन ! सलेश्यी जीव, सलेश्यभाव से प्रथम है, अथवा अप्रथम है? गौतम ! आहारकजीव के समान (वह अप्रथम है) । बहुवचन की वक्तव्यता भी इसी प्रकार समझनी चाहिए । कृष्णलेश्यी से लेकर शुक्ललेश्यी तक के विषय में भी इसी प्रकार जानना । विशेषता यह है कि जिस जीव के जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए। अलेश्यी जीव, मनुष्य और सिद्ध के सम्बन्ध में नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी के समान (प्रथम) कहना चाहिए।
भगवन् ! सम्यग्दृष्टि जीव, सम्यग्दृष्टिभाव की अपेक्षा से प्रथम है या अप्रथम है ? गौतम ! वह कदाचित् प्रथम होता है और कदाचित् अप्रथम होता है । इसी प्रकार एकेन्द्रियजीवों के सिवाय वैमानिक तक समझना चाहिए । सिद्धजीव प्रथम है, अप्रथम नहीं । बहुवचन से सम्यग्दृष्टिजीव प्रथम भी है, अप्रथम भी है । इसी प्रकार वैमानिकों तक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती-२) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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