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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक शक्रेन्द्र ने अपने बांये पैर को तीन बार भूमि पर पछाड़ा । यों करके फिर असुरेन्द्र असुरराज चमर से इस प्रकार कहाहे असुरेन्द्र असुरराज चमर! आज तो तु श्रमण भगवान महावीर के ही प्रभाव से बच (मुक्त हो) गया है, (जो) अब तुझे मुझसे (किंचित् भी) भय नहीं है; यों कहकर वह शक्रेन्द्र जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया। सूत्र-१७५
हे भगवन्! यों कहकर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार किया। वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार कहा (पूछा) भगवन् ! महाऋद्धिसम्पन्न, महाद्युतियुक्त यावत् महाप्रभाव-शाली देव क्या पहले पुद्गल को फैंक कर, फिर उसके पीछे जाकर उसे पकड़ लेने में समर्थ है ? हाँ, गौतम ! वह समर्थ है।
भगवन् ! किस कारण से देव, पहले फैंके हुए पुद्गल को, उसका पीछा करके यावत् ग्रहण करने में समर्थ हैं? गौतम ! जब पुद्गल फैंका जाता है, तब पहले उसकी गति शीघ्र (तीव्र) होती है, पश्चात् उसकी गति मन्द हो जाती है, जबकि महर्द्धिक देव तो पहले भी और पीछे (बाद में) भी शीघ्र और शीघ्रगति वाला तथा त्वरित और त्वरितगति वाला होता है। अतः इसी कारण से देव, फैंके हुए पुद्गल का पीछा करके यावत् उसे पकड़ सकता है।
भगवन् ! महर्द्धिक देव यावत् पीछा करके फैंके हुए पुद्गल को पकड़ने में समर्थ है, तो देवेन्द्र देवराज शक्र अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को क्यों नहीं पकड़ सका ? गौतम ! असुरकुमार देवों का नीचे गमन का विषय शीघ्र-शीघ्र और त्वरित-त्वरित होता है, और ऊर्ध्वगमन विषय अल्प-अल्प तथा मन्द-मन्द होता है, जबकि वैमानिक देवों का ऊंचे जाने का विषय शीघ्र-शीघ्र तथा त्वरित-त्वरित होता है और नीचे जाने का विषय अल्प-अल्प तथा मन्दमन्द होता है । एक समय में देवेन्द्र देवराज शक्र, जितना क्षेत्र ऊपर जा सकता है, उतना क्षेत्र-ऊपर जाने में वज्र को दो समय लगते हैं और चमरेन्द्र को तीन समय लगते हैं । (अर्थात्-) देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने में लगने वाला कालमान सबसे थोड़ा है, और अधोलोककंडक उसकी अपेक्षा संख्येयगुणा है । एक समय में असुरेन्द्र असुरराज चमर जितना क्षेत्र नीचा जा सकता है, उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में शक्रेन्द्र को दो समय लगते हैं और उतना ही क्षेत्र नीचा जाने में वज्र को तीन समय लगते हैं । (अर्थात्-) असुरेन्द्र असुरराज चमर का नीचे गमन का कालमान सबसे थोड़ा है और ऊंचा जाने का कालमान उससे संख्येयगुणा है । इस कारण से हे गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र, अपने हाथ से असुरेन्द्र असुरराज चमर को पकड़ने में समर्थ न हो सका।
हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊर्ध्वगमन-विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमन विषय, इन तीनों में कौन-सा विषय किन-किन से अल्प है, अधिक है और तुल्य है, अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र एक समय में सबसे कम क्षेत्र नीचे जाता है, तिरछा उससे संख्येय भाग जाता है और ऊपर भी संख्येय भाग जाता है। भगवन् ! असुरेन्द्र असुरराज चमर के ऊर्ध्वगमन-विषय, अधोगमन विषय और तिर्यग्गमनविषय में से कौन-सा विषय किन-किन से अल्प, अधिक, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम ! असुरेन्द्र असुरराज चमर, एक समय में सबसे कम क्षेत्र ऊपर जाता है; तिरछा, उससे संख्येय भाग अधिक (क्षेत्र) और नीचे उससे भी संख्येय भाग अधिक जाता है। वज्र-सम्बन्धी गमन का विषय (क्षेत्र), जैसे देवेन्द्र शक्र का कहा है, उसी तरह जानना चाहिए । परन्तु विशेषता यह है कि गति का विषय (क्षेत्र) विशेषाधिक कहना चाहिए । भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल, इन दोनों कालों में कौन-सा काल, किस काल से अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! देवेन्द्र देवराज शक्र का ऊपर जाने का काल सबसे थोड़ा है, और नीचे जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है । चमरेन्द्र का गमनविषयक कथन भी शक्रेन्द्र के समान ही जानना चाहिए; किन्तु इतनी विशेषता है कि चमरेन्द्र का नीचे जाने का काल सबसे थोड़ा है, ऊपर जाने का काल उससे संख्येयगुणा अधिक है । वज्र (के गमन के विषय में) पृच्छा की (तो भगवान ने कहा-) गौतम ! वज्र का ऊपर जान का काल सबसे थोड़ा है, नीचे जाने का काल उससे विशेषाधिक है।
भगवन् ! यह वज्र, वज्राधिपति-इन्द्र, और असुरेन्द्र असुरराज चमर, इन सब का नीचे जाने का काल और ऊपर जाने का काल; इन दोनों कालों में से कौन-सा काल किससे अल्प, बहुत (अधिक), तुल्य अथवा विशेषाधिक है?
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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