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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक अचलित है-चला नहीं कहलाता और यावत्-जो निर्जीर्ण हो रहा है, वह निर्जीर्ण नहीं कहलाता । दो परमाणुपुद्गल एक साथ नहीं चिपकते । दो परमाणुपुद्गल एक साथ क्यों नहीं चिपकते? इसका कारण यह है कि दो परमाणु-पुद् गलों में चिपकनापन नहीं होती तीन परमाणुपुद्गल एक दूसरे से चिपक जाते हैं। तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ? इसका कारण यह है कि तीन परमाणुपुद्गलों में स्निग्धता होती है; यदि तीन परमाणुपुद्गलों का भेदन (भाग) किया जाए तो दो भाग भी हो सकते हैं, एवं तीन भाग भी हो सकते हैं । अगर तीन परमाणुपुद्गलों के दो भाग किये जाए तो एक-एक तरफ डेढ़ परमाणु होता है और दूसरी तरफ भी डेढ़ परमाणु होता है । यदि तीन परमाणुपुद्गलों के तीन भाग किये जाए तो एक-एक करके तीन परमाणु अलग-अलग हो जाते हैं । इसी यावत् चार परमाणु-पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए । पाँच परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और वे दुःखरूप (कर्मरूप) में परिणत होते हैं । वह दुःख (कर्म) भी शाश्वत है, और सदा सम्यक् प्रकार के उपचय को और अपचय को प्राप्त होता है।
बोलने से पहले की जो भाषा (भाषा के पुदगल) हैं, वह भाषा है । बोलते समय की भाषा अभाषा है और बोलने का समय व्यतीत हो जाने के बाद की भाषा, भाषा है । यह जो बोलने से पहले की भाषा, भाषा है और बोलते समय की भाषा, अभाषा है तथा बोलने के समय के बाद की भाषा, भाषा है; सो क्या बोलते हुए पुरुष की भाषा है या न बोलते हुए पुरुष की भाषा है ? न बोलते हुए पुरुष की वह भाषा है, बोलते हुए पुरुष की वह भाषा नहीं है।
करने से जो पूर्व की जो क्रिया है, वह दुःखरूप है, वर्तमान में जो क्रिया की जाती है, वह दुःखरूप नहीं है और करने के समय के बाद की कृतक्रिया भी दुःखरूप है । वह जो पूर्व की क्रिया है, वह दुःख का कारण है, की जाती हुई क्रिया दुःख का कारण नहीं है और करने के समय के बाद की क्रिया दुःख का कारण है; तो क्या वह करने से दुःख का कारण है या न करने से दुःख का कारण है ? न करने से वह दुःख का कारण है, करने से दुःख का कारण नहीं है; ऐसा कहना चाहिए। _ अकृत्य दुःख है, अस्पृश्य दुःख है, और अक्रियमाण कृत दुःख है । उसे न करके प्राण, भूत, जीव और सत्त्व वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए । श्री गौतमस्वामी पूछते हैं-भगवन् ! क्या अन्यतीर्थिकों का इस प्रकार का यह मत सत्य है ? गौतम ! यह अन्यतीर्थिक जो कहते हैं यावत् वेदना भोगते हैं, ऐसा कहना चाहिए, उन्होंने यह सब जो कहा है, वह मिथ्या कहा है । हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि जो चल रहा है, वह चला कहलाता है और यावत् जो निर्जर रहा है, वह निर्जीर्ण कहलाता है।
दो परमाणु पुद्गल आपस में चिपक जाते हैं । इसका क्या कारण है ? दो परमाणु पुद्गलों में चिकनापन है, इसलिए दो परमाणु पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं । इन दो परमाणु पुद्गलों के दो भाग हो सकते हैं । दो परमाणु पुद् गलों के दो भाग किये जाए तो एक तरफ एक परमाणु और एक तरफ एक परमाणु होता है । तीन परमाणुपुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं । तीन परमाणुपुद्गल परस्पर क्यों चिपक जाते हैं ? तीन परमाणुपुद्गल इस कारण चिपक जाते हैं कि उन परमाणुपुद्गलों में चिकनापन है । उन तीन परमाणुपुद्गलों के दो भाग भी हो सकते हैं और तीन भाग भी हो सकते हैं । दो भाग करने पर एक तरफ परमाणु और एक तरफ दो प्रदेश वाला एक व्यणुक स्कन्ध होता है। तीन भाग करने पर एक-एक करके तीन परमाणु हो जाते हैं । इसी प्रकार यावत्-चार परमाणु पुद्गल में भी समझना चाहिए । परन्तु तीन परमाणु के डेढ-डेढ (भाग) नहीं हो सकते । पाँच परमाणु-पुद्गल परस्पर चिपक जाते हैं और परस्पर चिपककर एक स्कन्धरूप बन जाते हैं। वह स्कन्ध अशाश्वत है और सदा उपचय तथा अपचय पाता है।
बोलने से पहले की भाषा अभाषा है; बोलते समय की भाषा भाषा है और बोलने के बाद की भाषा भी अभाषा है । वह जो पहले की भाषा अभाषा है, बोलते समय की भाषा भाषा है और बोलने के बाद की भाषा अभाषा है; सो क्या बोलने वाले पुरुष की भाषा है, या नहीं बोलते हुए पुरुष की भाषा है ? वह बोलने वाले पुरुष की भाषा है, नहीं बोलते हुए पुरुष की भाषा नहीं है । (करने से) पहले की क्रिया दुःख का कारण नहीं है, उसे भाषा के समान ही समझना चाहिए । यावत्-वह क्रिया करने से दुःख का कारण है, न करने से दुःख का कारण नहीं है, ऐसा कहना
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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