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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक तिनके इकट्ठे करता है, तब तक वह तीन क्रियाओं से स्पृष्ट होता है । जब वह तिनके इकट्ठे कर लेता है, और उनमें अग्नि डालता है, किन्तु जलाता नहीं है, तब तक वह चार क्रियाओं वाला होता है । जब वह तिनके इकट्ठे करता है, उनमें आग डालता है और जलाता है, तब वह पुरुष कायिकी आदि पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। इसलिए हे गौतम! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रियाओं वाला यावत् कदाचित् पाँचों क्रियाओं वाला कहा जाता है। सूत्र-८९
भगवन् ! मृगों से आजीविका चलाने वाला, मृगों का शिकार करने के लिए कृतसंकल्प, मृगों के शिकार में तन्मय, मृगवध के लिए कच्छ में यावत् वनविदुर्ग में जाकर ये मृग है ऐसा सोचकर किसी एक मृग को मारने के लिए बाण फेंकता है, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? हे गौतम ! वह पुरुष कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित पाँच क्रिया वाला होता है। भगवन! किस कारण से ऐसा कहा जाता है? गौतम! जब तक वह पुरुष बाण फेंकता है, परन्तु मग को बेधता नहीं है, तथा मग को मारता नहीं है, तब वह पुरुष तीन क्रिया वाला है। जब वह बाण फैंकता है और मृग को बेधता है, पर मृग को मारता नहीं है, तब तक वह चार क्रिया वाला है,
और जब वह बाण फेंकता है, मग को बेधता है और मारता है; तब वह पुरुष पाँच क्रिया वाला कहलाता है। हे गौतम! इस कारण ऐसा कहा जाता है कि कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पाँच क्रिया वाला होता है। सूत्र-९०
भगवन् ! कोई पुरुष कच्छ में यावत् किसी मृग का वध करने के लिए कान तक ताने हुए बाण को प्रयत्नपूर्वक खींच कर खड़ा हो और दूसरा कोई पुरुष पीछे से आकर उस खड़े हुए पुरुष का मस्तक अपने हाथ से तलवार द्वारा काट डाले । वह बाण पहले के खिंचाव से उछलकर उस मृग को बींध डाले, तो हे भगवन् ! वह पुरुष मृग के वैर से स्पृष्ट है या (उक्त) पुरुष के वैर से स्पृष्ट है ? गौतम ! जो पुरुष मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट है और जो पुरुष, पुरुष को मारता है, वह पुरुष के वैर से स्पृष्ट है । भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं ? हे गौतम ! यह तो निश्चित है न कि जो किया जा रहा है, वह किया हुआ कहलाता है, जो मारा जा रहा है, वह मारा हुआ जो जलाया जा रहा है, वह जलाया हुआ कहलाता है और जो फैंका जा रहा है, वह फैंका हुआ, कहलाता है ? हाँ, भगवन् ! जो किया जा रहा है, वह किया हुआ कहलाता है यावत्-जो फैंका जा रहा है, वह फैंका हुआ कहलाता है। इसलिए हे गौतम ! जो मृग को मारता है, वह मृग के वैर से स्पृष्ट और जो पुरुष को मारता है, वह पुरुष कहलाता है। यदि मरने वाला छह मास के अन्दर मरे, तो मारने वाला कायिकी आदि यावत पाँचों क्रियाओं से स्पष्ट कहलाता है और यदि मरने वाला छह मास के पश्चात् मरे तो मारने वाला पुरुष, कायिकी यावत् पारितापनिकी इन चार क्रियाओं से स्पृष्ट कहलाता है। सूत्र-९१
भगवन् ! कोई पुरुष किसी पुरुष को बरछी (या भाले) से मारे अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काट डाले, तो वह पुरुष कितनी क्रिया वाला होता है ? गौतम ! जब वह पुरुष उसे बरछी द्वारा मारता है, अथवा अपने हाथ से तलवार द्वारा उस पुरुष का मस्तक काटता है, तब वह पुरुष कायिकी, आधिकर-णिकी यावत् प्राणातिपातिकी इन पाँचों क्रियाओं से स्पृष्ट होता है और वह आसन्नवधक एवं दूसरे के प्राणों की परवाह न करने वाला पुरुष, पुरुष-वैर से स्पष्ट होता है।
सूत्र- ९२
____ भगवन् ! एक सरीखे, एक सरीखी चमड़ी वाले, समानवयस्क, समान द्रव्य और उपकरण वाले कोई दो पुरुष परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करें, तो उनमें से एक पुरुष जीतता है और एक पुरुष हारता है; भगवन् ! ऐसा क्यों होता है ? हे गौतम ! जो परुष सवीर्य होता है. वह जीतता है और जो वीर्यहीन होता है, वह हारता है ? भगवन् ! इसका क्या कारण है ? गौतम ! जिसने वीर्य-विघातक कर्म नहीं बाँधे हैं, नहीं स्पर्श किये हैं यावत् प्राप्त नहीं किए हैं और
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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