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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक किसी को ऋणी न रहने दिया जाए। इसके अतिरिक्त प्रधान गणिकाओं तथा नाटकसम्बन्धी पात्रों से युक्त था । अनेक प्रकार के तालानुचरों द्वारा निरन्तर करताल आदि तथा वादकों द्वारा मृदंग उन्मुक्त रूप से बजाए जा रहे थे । बिना कुम्हलाई हुई पुष्पमालाओं उसमें आमोद-प्रमोद और खेलकूद करने वाले अनेक लोग भी थे । इस प्रकार दस दिनों तक राजा द्वारा पुत्रजन्म महोत्सव प्रक्रिया होती रही । इन दस दिनों की पुत्रजन्म संबंधी महोत्सव-प्रक्रिया जब प्रवृत्त हो रही थी, तब बल राजा सैकड़ों, हजारों और लाखों रूपयों के खर्च वाले याग-कार्य करता रहा तथा दान और भाग देता और दिलवाता हुआ एवं सैकड़ों, हजारों और लाखों रुपयों के लाभ देता और स्वीकारता रहा।
तदनन्तर उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन कुल मर्यादा अनुसार प्रक्रिया की। तीसरे दिन (बालक को) चन्द्र-सूर्य-दर्शन की क्रिया की । छठे दिन जागरिका की । ग्यारह दिन व्यतीत होने पर अशुचि जातककर्म से निवृत्ति की । बारहवाँ दिन आने पर विपुल अशन, पान, खादिम, स्वादिम तैयार कराया । फिर शिव राजा के समान यावत् समस्त क्षत्रियों यावत् ज्ञातिजनों को आमंत्रित किया और भोजन कराया। इसके पश्चात् स्नान एवं बलिकर्म किए हुए राजा ने उन सब मित्र, ज्ञातिजन आदि का सत्कार-सम्मान किया और फिर उन्हीं मित्र, ज्ञातिजन यावत् राजा और क्षत्रियों के समक्ष अपने पितामह, प्रतिपतामह एवं पिता के प्रपितामह आदि से चले आत हुए, अनेक पुरुषों की परम्परा से रूढ़, कुल के अनुरूप, कुल के सदृश कुलरूप सन्तान-तन्तु की वृद्धि करने वाला, गुणयुक्त एवं गुणनिष्पन्न ऐसा नामकरण करते हुए कहा-चूं कि हमारा यह बालक राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, इसलिए हमारे इस बालक का महाबल नाम हो । अत एव उसका नाम महाबल रखा।
तदनन्तर उस बालक महाबल कुमार का-१. क्षीरधात्री, २. मज्जनधात्री, ३. मण्डनधात्री, ४. क्रीड़नधात्री और ५. अंकधात्री, इन पाँच धात्रिओं द्वारा राजप्रश्नीयसूत्र में वर्णित दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान लालन-पालन होने लगा यावत् वह महाबल कुमार वायु और व्याघात से रहित स्थान में रही हुई चम्पकलता के समान अत्यन्त सुख-पूर्वक बढ़ने लगा । साथ ही, महाबल कुमार के माता-पिता ने अपनी कुलमर्यादा की परम्परा के अनुसार क्रमशः चन्द्र-सूर्यदर्शन, जागरण, नामकरण, घुटनों के बल चलना, पैरों से चलना, अन्नप्राशन, ग्रासवर्द्धन, संभाषण, कर्णवेधन, संवत्सरप्रतिलेखन, नक्खत्तः शिखा रखवाना और उपनयन संस्कार करना, इत्यादि तथा अन्य बहुत-से गर्भाधान, जन्म-महोत्सव आदि कौतुक किए।
फिर उस महाबल कुमार के माता-पिता ने उसे आठ वर्ष से कुछ अधिक वय का जानकर शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त के कलाचार्य के यहाँ पढ़ने भेजा, इत्यादि वर्णन दृढ़प्रतिज्ञकुमार के अनुसार करना, यावत् महाबल कुमार भोगों में समर्थ हुआ । महाबलकुमार को बालभाव से उन्मुक्त यावत् पूरी तरह भोग-समर्थ जानकर माता-पिता ने उसके लिए आठ सर्वोत्कृष्ट प्रासाद बनवाए । वे प्रासाद अत्यन्त ऊंचे यावत् सुन्दर थे। उन आठ श्रेष्ठ प्रासादों के ठीक मध्य में एक महाभवन तैयार करवाया, जो अनेक सैकड़ों स्तंभों पर टिका हुआ था, यावत् वह अतीव सुन्दर था। सूत्र-५२२
तत्पश्चात् किसी समय शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र और मुहूर्त में महाबल कुमार ने स्नान किया, बलिकर्म किया, कौतुक-मंगल प्रायश्चित्त किया । उसे समस्त अलंकारों से विभूषित किया गया । फिर सौभाग्यवती स्त्रियों के द्वारा अभ्यंगन, स्नान, गीत, वादित, मण्डन, आठ अंगों पर तिलक, लाल डोरे के रूप में कंकण तथा दही, अक्षत आदि मंगल अथवा मंगलगीत-विशेष-रूप में आशीर्वचनों से मांगलिक कार्य किये गए तथा उत्तम कौतुक एवं मंगलोपचार के रूप में शान्तिकर्म किए गए । तत्पश्चात् महाबल कुमार के माता-पिता ने समान जोड़ी वाली, समान त्वचा वाली, समान उम्र की, समान रूप, लावण्य, यौवन एवं गुणों से युक्त विनीत एवं कौतुक तथा मंगलोपचार की हुई तथा शान्तिकर्म की हुई और समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ एक ही दिन में (महाबल कुमार का) पाणिग्रहण करवाया । विवाहोपरान्त महाबल कुमार माता-पिता ने प्रीतिदान दिया । यथा-आठ कोटि हिरण्य, आठ कोटि स्वर्ण मुद्राएं, आठ श्रेष्ठ मुकुट, आठ श्रेष्ठ कुण्डलयुगल, आठ उत्तम हार, आठ उत्तम अर्द्धहार, आठ उत्तम एकावली हार, आठ मुक्तावली हार, आठ कनकावली हार, आठ रत्नावली हार, आठ श्रेष्ठ कड़ों की जोड़ी, आठ
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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