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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक सुदर्शन श्रेष्ठी भगवान महावीर से धर्मकथा सूनकर एवं हृदय में अवधारण करके अतीव हृष्ट-तुष्ट हुआ । उसने खडे होकर भगवान महावीर की तीन बार प्रदक्षिणा की और वन्दना-नमस्कार करके पूछा-भगवन् ! काल कितने प्रकार का है ? हे सुदर्शन ! चार प्रकार का । यथा-प्रमाणकाल, यथार्निवृत्ति काल, मरणकाल और अद्धाकाल ।
भगवन् ! प्रमाणकाल क्या है ? सुदर्शन ! प्रमाणकाल दो प्रकार का कहा गया है, यथा-दिवस-प्रमाणकाल और रात्रि-प्रमाणकाल । चार पौरुषी (प्रहर) का दिवस होता है और चार पौरुषी (प्रहर) की रात्रि होती है । दिवस और रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तथा दिवस और रात्रि की जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है। सूत्र - ५१५
भगवन् ! जब दिवस की या रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तब उस मुहूर्त का कितना भाग घटते-घटते जघन्य तीन मुहूर्त की दिवस और रात्रि की पौरुषी होती है ? और जब दिवस और रात्रि की पौरुषी जघन्य तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का कितना भाग बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी होती है ? हे सुदर्शन ! जब दिवस और रात्रि की पौरुषी उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का एक सौ बाईसवां भाग घटते-घटते जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, और जब जघन्य पौरुषी तीन मुहूर्त की होती है, तब मुहूर्त का एक सौ बाईंसवा भाग बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट पौरुषी साढ़े चार मुहूर्त की होती है । भगवन् ! दिवस और रात्रि की उत्कृष्ट साढ़े चार मुहूर्त की पौरुषी कब होती है और जघन्य तीन मुहूर्त की पौरुषी कब होती है? हे सुदर्शन ! जब उत्कृष्ट अठारह मुहर्त का दिन होता है तथा जघन्य बारह मुहर्त की छोटी रात्रि होती है, तब साढ़े चार मुहर्त की दिवस की उत्कृष्ट पौरुषी होती है और रात्रि की तीन मुहूर्त की सबसे छोटी पौरुषी होती है । जब उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की बड़ी रात्रि होती है और जघन्य बारह मुहूर्त का छोटा दिन होता है, तब साढ़े चार मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रिपौरुषी होती है और तीन मुहर्त की जघन्य दिवस-पौरुषी होती है। भगवन् ! अठारह मुहर्त का उत्कृष्ट दिवस और बारह मुहर्त की जघन्य रात्रि कब होती है ? तथा अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि और बारह मुहूर्त का जघन्य दिन कब होता है ? सुदर्शन ! अठारह मुहूर्त का उत्कृष्ट दिवस और बारह मुहूर्त की जघन्य रात्रि आषाढ़ी पूर्णिमा की होती है; तथा अठारह मुहूर्त की उत्कृष्ट रात्रि और बारह मुहूर्त का जघन्य दिवस पौषी पूर्णिमा को होता है।
भगवन् ! कभी दिवस और रात्रि, दोनों समान भी होते हैं ? हाँ, सुदर्शन ! होते हैं । भगवन् ! दिवस और रात्रि. ये दोनों समान कब होते हैं? सुदर्शन ! चैत्र की और आश्विन की पूर्णिमा को दिवस और रात्रि दोनों समान होते हैं । उस दिन १५ मुहूर्त का दिन और पन्द्रह मुहूर्त की रात होती है तथा दिवस एवं रात्रि की पौने चार मुहर्त की पौरुषी होती है सूत्र- ५१६
भगवन् ! वह यथार्निवृत्तिकाल क्या है ? (सुदर्शन !) जिस किसी नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य अथवा देव ने स्वयं जिस गति का और जैसा भी आयुष्य बाँधा है, उसी प्रकार उसका पालन करना-भोगना, यथायुर्निवृ-त्तिकाल कहलाता है। भगवन् ! मरणकाल क्या है ? सुदर्शन ! शरीर से जीव का अथवा जीव से शरीर का (पृथक् होने का काल) मरणकाल है, यह है-मरणकाल का लक्षण ।
भगवन् ! अद्धाकाल क्या है ? सुदर्शन ! अनेक प्रकार का है । वह समयरूप प्रयोजन के लिए है, आवलिकारूप प्रयोजन के लिए है, यावत् उत्सर्पिणीरूप प्रयोजन के लिए है । हे सुदर्शन ! दो भागों में जिसका छेदन-विभाग न हो सके, वह समय है, क्योंकि वह समयरूप प्रयोजन के लिए है । असंख्य समयों के समुदाय की एक आवलिका कहलाती है । संख्यात आवलिका का एक उच्छ्वास होता है, इत्यादि छठे शतक में कहे गए अनुसार यावत्- यह एक सागरोपम का परिमाण होता है, यहाँ तक जान लेना चाहिए । भगवन् ! इन पल्योपम और सागरोपमों से क्या प्रयोजन है? सुदर्शन ! इन पल्योपम, सागरोपमों से नैरयिकों, तिर्यञ्चयोनिकों, मनुष्यों, देवों का आयुष्य नापा जाता है सूत्र- ५१७
भगवन् ! नैरयिकों की स्थिति कितने काल की है ? सुदर्शन ! स्थितिपद सम्पूर्ण कहना, यावत्-अजघन्यअनुत्कृष्ट तैंतीस सागरोपम की स्थिति है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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