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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/सूत्रांक सूत्र-६३
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में रहने वाले नारकों के अवगाहना स्थान कितने हैं ? गौतम ! उनके अवगाहना स्थान असंख्यात हैं | जघन्य अवगाहना (अंगुल के असंख्यातवें भाग), (मध्यम अवगाहना) एक प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, द्विप्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, यावत् असंख्यात प्रदेशाधिक जघन्य अवगाहना, तथा उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना जानना।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में जघन्य अवगाहना वाले नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं. मानोपयुक्त हैं, मायोपयुक्त हैं अथवा लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! जघन्य अवगाहना वालों में अस्सी भंग कहने चाहिए, यावत् संख्यात देश अधिक जघन्य अवगाहना वालों के भी अस्सी भंग कहने चाहिए । असंख्यात-प्रदेश अधिक जघन्य अवगाहना वाले और उसके योग्य उत्कृष्ट अवगाहना वाले, इन दोनों प्रकार के नारकों में सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से एक-एक नारकावास में बसने वाले नारक जीवों के शरीर कितने हैं? गौतम ! उनके तीन शरीर कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-वैक्रिय, तैजस और कार्मण।।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में बसने वाले वैक्रिय शरीरी नारक क्या क्रोधोपयुक्त हैं इत्यादि ? गौतम ! उनके क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए। और इस प्रकार शेष दोनों शरीरों (तैजस और कार्मण) सहित तीनों के संबंध में यही बात (आलापक) कहनी चाहिए।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास बसनेवाले नैरयिकों के शरीरों का कौन-सा संहनन है ? गौतम ! उनका शरीर संहननरहित है, उनके शरीर में हड्डी, शिरा और स्नायु नहीं होती। जो पुद्गल अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ और अमनोहर हैं, वे पुद्गल नारकों के शरीर-संघात रूप परिणत होते हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के तीस लाख नारकावासोंमें से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले और छ संहननोंमें जिनके एक भी संहनन नहीं है, वे नैरयिक क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् अथवा लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके सत्ताईस भंग कहने चाहिए।
भगवन ! इस रत्नप्रभा पथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से प्रत्येक नारकावास में रहने वाले नैरयिकों के शरीर किस संस्थान वाले हैं ? गौतम ! उन नारकों का शरीर दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है-भव-धारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें जो भवधारणीय शरीर वाले हैं, वे हण्डक संस्थान वाले होते हैं, और जो शरीर उत्तरवैक्रियरूप हैं, वे भी हण्डकसंस्थान वाले कहे गए हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में यावत् हुण्डकसंस्थान में वर्तमान नारक क्या क्रोधोपयुक्त इत्यादि हैं ? गौतम! इनके भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए।
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नैरयिकों में कितनी लेश्याएं हैं ? गौतम ! उनमें केवल एक कापोतलेश्या कही गई है । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले कापोतलेश्या वाले नारक जीव क्या क्रोधोपयुक्त हैं, यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके भी सत्ताईस भंग कहने चाहिए। सूत्र - ६४
भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में बसने वाले नारक जीव क्या सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, या सम्यग्मिथ्या-दृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? हे गौतम ! वे तीनों प्रकार के होते हैं । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी में बसने वाले सम्यग्दृष्टि नारक क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त हैं ? गौतम ! इनके क्रोधोपयुक्त आदि सत्ताईस भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार मिथ्यादृष्टि के भी क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । सम्यमिथ्यादृष्टि के अस्सी भंग कहने चाहिए । भगवन् ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले नारक जीव क्या ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? गौतम ! उनमें ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं । जो ज्ञानी हैं, उनमें नियमपूर्वक तीन ज्ञान होते हैं, और जो अज्ञानी हैं, उनमें तीन अज्ञान भजना से होते हैं । भगवन्! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में रहने वाले आभिनिबोधिक ज्ञानी नारकी जीव क्या क्रोधोपयुक्त यावत् लोभोपयुक्त होते हैं ? गौतम ! उन आभिनिबोधिक ज्ञान वाले नारकों के क्रोधोपयुक्त आदि २७ भंग कहने चाहिए । इसी प्रकार
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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