________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक है। इस प्रकार यावत् रत्नप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।
(त्रिकसंयोगी १५ भंग)- अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में होते है । इस प्रकार यावत् रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा बालुकाप्रभा ओर पंकप्रभा में होते है । यावत् अथवा रत्नप्रभा, बालुकाप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते है। जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नैरयिक जीवो के त्रिकसंयोगी भंग कहे हे, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत् अथवा रत्नप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।।
(चतुसंयोगी २० भंग)-अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते है । अथवा रत शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और धूमप्रभा में होते है । यावत् अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और अधःसप्तमपथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा पंकप्रभा और धमप्रभा में होते है । रत्नप्रभा को न छोडते हए जिस प्रकार चार नैरयिक जीवो के चतुःसंयोगी भंग कहे है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए, यावत् अथवा रत्नप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।
(पंचसंयोगी १५ भंग)-अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते है। अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और तमःप्रभा में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभ, बालुकाप्रभा, पंकप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, धूमप्रभा ओर तमःपृथ्वी में होते है । रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए जिस प्रकार ५ नैरयिक जीवो के पंचसंयोग भंग कहे है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए, अथवा यावत् रत्नप्रभा, पंकप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।
(ष्टसंयोगी ६ भंग) - अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और तमःप्रभा में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् धूमप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा यावत् पंकप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, पंकप्रभा, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा रत्नप्रभा, बालुकाप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।
(सप्तसंयोगी १ भंग)- अथवा रत्नप्रभा, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है।
भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक, शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक, यावत् अधःसप्तपृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक में से कौन प्रवेशनक किस प्रवेशनक से अल्प यावत् विशेषाधिक है ? गांगेय ! सबसे अल्प अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक है, उनसे तमःप्रभापृथ्वी नैरयिकप्रवेशनक असंख्यातगुण है। इस प्रकार उलटे क्रम से, यावत् रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक असंख्यातगुण है। सूत्र-४५४
भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का है ? पांच प्रकार का- एकेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकप्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक ।
भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवो में उत्पन्न होता है ? भगवन ! दो तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिकप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियो में उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न | गांगेय ! एकेन्द्रियो में होते है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में होते है । अथवा एक एकेन्द्रिय में और एकद्वीन्द्रिय में होता है । नैरयिक जीवों में समान तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक के विषय में भी असंख्य तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक तक कहना।
भगवन् ! उत्कृष्ट तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक के विषय में पृच्छा । गांगेय ! ये सभी एकेन्द्रियों में होते है । अथवा एकेन्द्रिय और द्वीन्द्रियो में होते है । नैरयिक जीवोनो समान तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक के विषय में : करना चाहिए । एकेन्द्रिय जीवों को न छोड़ते हुए द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी और पंचसंयोगी भंग उपयोगपूर्वक कहने चाहिए; यावत् अथवा एकेन्द्रिय जीवों में द्वीन्द्रियो में, यावत् पंचेन्द्रियो में होते है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 201