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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक रत्नप्रभा में, यावत् एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा मे, यावत् एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता।
भगवन् ! सात नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनकद्वारा प्रवेश करते हुए क्या रन्तप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय! वे सातों नैरयिक रत्नप्रभा में होते है, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
(द्विकसंयोगी १२६ भंग)-अथवा एक रत्नप्रभा में और छह शर्कराप्रभा में होते है । इस क्रम से छह नैरयिकजीवो के द्विकसंयोगी भंग समान सात नैरयिक जीवो के भी द्विकसंयोगी भंग कहना । विशेष यहाँ एक नैरयिक का अधिक संचार करना । शेष सभी पूर्ववत । जिस प्रकार छह नैरयिको के त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी और षट्संयोगी भंग कहे, उसी प्रकार सात नैरयिको के त्रिकसंयोगी आदि भंगो के विषय में कहना । विशेषता इतनी है कि यहाँ एक-एक नैरयिक जीव का अधिक संचार करना । यावत्-षट्संयोगी का अन्तिम भंग इस प्रकार कहना-अथवा दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! आठ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न | गांगेय ! रत्नप्रभा में होते है, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में और सात शर्कराप्रभा में होते है, इत्यादि; जिस प्रकार सात नैरयिको के द्विकसंयोगी त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी
और षट्संयोगी भंग कहे गए है, उसी प्रकार आठ नैरयिको के भी द्विकसंयोगी आदि भंग कहने चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए । शेष सभी षट्संयोगी तक पूर्वोक्त प्रकार से कहना चाहिए । अन्तिम भंग यह है- अथवा तीन शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, यावत् एक तमःप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में यावत् दो तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । इसी प्रकार सभी स्थानो में संचार करना चाहिए । यावत् - अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! नौ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न । हे गांगेय ! वे नौ नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होते है, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा एक रत्नप्रभा में और आठ शर्कराप्रभा में होते है, इत्यादि जिस प्रकार आठ नैरयिको के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी और सप्तसंयोगी भंग कहे है, उसी प्रकार नौ नैरयिको के विषय में भी कहना। विशेष यह है कि एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए । शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। अन्तिम भंग इस प्रकार है-अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! दस नैरयिकजीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते है ? इत्यादि पश्न । गांगेय ! वे दस नैरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते है , अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होता है । अथवा एक रत्नप्रभा में और नौ शर्कराप्रभा में होते है; इत्यादि नौ नैरयिक जीवो के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, यावत् एवं सप्तसंयोगी भंग समान दस नैरयिक जीवो के भी भंग कहना । विशेष यह है कि यहाँ एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना, शेष सभी भंग पूर्ववत् । उनका अंतिम आलापक है-अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शर्करप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! संख्यात नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते है ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! संख्यात नैरयिक रत्नप्रभा में होते है, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होते है । अथवा एक रत्नप्रभा में होता है, और संख्यात शर्कराप्रभा में होते है, इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में और संख्यात
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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