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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक होता है, यहाँ तक कहना । (ये चतुःसंयोगी १४० भंग होते है)।
अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभ में और एक धूमप्रभा में होता है। अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा मे और एक तमःप्रभा में, अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, और एक तमःप्रभा में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, और तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में एक पंकप्रभा में एधक तमः प्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में । अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
भगवन् ! छह नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्नपन्न होता है ? इत्यादि प्रश्न । गांगेय ! ये रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते है। (द्विकसंयोगी १०५ भंग-)- अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच शर्कराप्रभा में होते है । अथवा एक रत्नप्रभा में
में । अथवा यावत् एक रत्नप्रभा में और पांच अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा दो रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में, अथवा यावत दो रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमपथ्वी में । अथवा तीन रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में । इस क्रम द्वारा पांच नैरयिक जीवो के द्विकसंयोगी भंग के समान छह नैरयिको के भी रहना । विशेष यह है की यहाँ एक अधिक का संचार करना, यावत् अथवा पांच तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
(त्रिकसंयोगी ३५० भंग)- एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभ में और चार बालुकाप्रभा में होते है । अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और चार पंकप्रभा में। इस प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में,
और चार अधःसप्तमपृथ्वी में । अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में । इस क्रम से पांच नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग समान छह नैरयिक जीवो के भी त्रिकसंयोगी भंग कहना । विशेष यहाँ एक का संचार अधिक करना । शेष सब पूर्ववत्
(चतुष्कसंयोगी ३५० भंग)- जिस प्रकार पांच नैरयिको के चतुष्कसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नैरयिको के चतुःसंयोगी भंग जान लेने चाहिए।
(पंचसंयोगी १०५ भंग)-पांच नैरयिको के जिस प्रकार पंचसंयोगी भंग कहे गए, उसी प्रकार छह नैरयिको के पंचसंयोगी भंग जान लेना, परन्तु इसमे एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए । यावत् अन्तिम भंग (इस प्रकार है-) जो बालुकाप्रभामें, एक पंकप्रभामें, एक धूमप्रभामें, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है
(षट्संयोगी ७ भंग)-अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्राभ में, यावत् एक तमःप्रभा में होता है, अथवा एक
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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