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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक देवी भी बाँधती है । भगवन् ! साम्परायिक कर्म क्या स्त्री बाँधती है, पुरुष बाँधता है, यावत् नोस्त्री-नोपुरुष-नोनपुंसक बाँधता है ? गौतम ! स्त्री भी बाँधती है, पुरुष भी बाँधता है, यावत् बहुत नपुंसक भी बाँधते हैं, अथवा ये सब और अवेदी एक जीव भी बाँधता है, अथवा ये सब और बहुत अवेदी जीव भी बाँधते हैं । भगवन् ! यदि वेदरहित एक जीव
और वेदरहित बहुत जीव साम्परायिक कर्म बाँधते हैं तो क्या स्त्रीपश्चात्कृत जीव बाँधता है या पुरुषपश्चात्कृत जीव बाँधता है ? गौतम ! जिस प्रकार ऐर्यापथिक कर्मबंधक के सम्बन्धमें छब्बीस भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना; यावत् (२६) बहुत स्त्रीपश्चात्कृत जीव, बहुत पुरुषपश्चात्कृत जीव और बहुत नपुंसकपश्चात्कृत जीव बाँधते हैं।
भगवन् ! साम्परायिक कर्म (१) किसी जीव ने बाँधा, बाँधता है और बाँधेगा ? (२) बाँधा, बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? (३) बाँधा, नहीं बाँधता है और बाँधेगा ? तथा (४) बाँधा, नहीं बाँधता है और नहीं बाँधेगा ? गौतम ! (१) कईं जीवों ने बाँधा, बाँधते हैं और बाँधेगे; (२) कितने ही जीवों ने बाँधा, बाँधते हैं और नहीं बाँधेगे; (३) कितने ही जीवों ने बाँधा है, नहीं बाँधते हैं और बाँधेगे; (४) कितने ही जीवों ने बाँधा है, नहीं बाँधते हैं और नहीं बाँधेगे।
भगवन् ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बाँधता है ? इत्यादि प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए । गौतम ! साम्परायिक कर्म सादि-सपर्यवसित बाँधता है, अनादि-सपर्यवसित बाँधता है, अनादि-अपर्यवसित बाँधता है; किन्तु सादि-अपर्यवसित नहीं बाँधता । भगवन् ! साम्परायिक कर्म देश से आत्मदेश को बाँधता है ? गौतम ! ऐर्यापथिक कर्मबंध के समान साम्परायिक कर्मबंध के सम्बन्ध में भी जान लेना, यावत सर्व से सर्व को बाँधता है। सूत्र -४१६
भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय।
भगवन् ! परीषह कितने कहे हैं ? गौतम ! परीषह बाईस कहे हैं, वे इस प्रकार-१. क्षुधा-परीषह, २. पिपासापरीषह यावत् २२-दर्शन परीषह । भगवन् ! इन बाईस परीषहों का किन कर्मप्रकृतियों में समावेश होता है ? गौतम ! चार कर्मप्रकृतियों में इन २२ परीषहों का समवतार होता है, इस ज्ञानावरणीय, वेदनीय, मोहनीय और अन्तराय ।
भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! दो परीषहों का यथा-प्रज्ञापरीषह और ज्ञानपरीषह (अज्ञानपरीषह) । भगवन् ! वेदनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम! ग्यारह परीषहों का। सूत्र-४१७
पहले पाँच (क्षुधा, शीत, उष्ण और दंशमशक), चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और जल्ल परीषह । इन का समवतार वेदनीय कर्म में होता है। सूत्र -४१८
भगवन् ! दर्शनमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समतवार होता है ? गौतम ! एक दर्शनपरीषह का समवतार होता है। सूत्र - ४१९
भगवन् ! चारित्रमोहनीयकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! सात परीषहों का-अरति, अचेल. स्त्री, निषद्या, याचना, आक्रोश, सत्कार-पुरस्कार । सूत्र-४२०
भगवन् ! अन्तरायकर्म में कितने परीषहों का समवतार होता है ? गौतम ! एक अलाभपरीषह का समवतार होता है।
भगवन् ! सात प्रकार के कर्मों को बाँधने वाले जीव के कितने परीषह हैं ? गौतम ! बाईस । परन्तु वह जीव एक साथ बीस परीषहों का वेदन करता है; क्योंकि जिस समय वह शीतपरीषह वेदता है, उस समय उष्ण-परीषह का वेदन नहीं करता और जिस समय उष्णपरीषह का वेदन करता है, उस समय शीतपरीषह का वेदन नहीं करता तथा
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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