________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक अनर्थदण्डविरमण, सामायिक, देशावकाशिक, पौषधोपवास, अतिथि-संविभाग तथा अपश्चिम मारणान्तिकसंलेखना-जोषणा-आराधना। सूत्र - ३४३
भगवन् ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं।
नैरयिक जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी ? गौतम ! नैरयिक जीव न तो मलगणप्रत्याख्यानी हैं और न उत्तरगणप्रत्याख्यानी. किन्त अप्रत्याख्यानी हैं । इसी प्रकार चतरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों के विषय में जीवों की तरह कहना । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के सम्बन्ध में नैरयिक जीवों की तरह कहना । ये सब अप्रत्याख्यानी हैं।
भगवन ! मूलगुणप्रत्याख्यानी, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी, इन जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, (उनसे) उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्येयगुणा और (उनसे) अप्रत्याख्यानी अनन्तगुणा हैं । भगवन् ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि जीवों में पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीव कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक है ? गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच जीव सबसे थोड़े, उनसे उत्तरगुणप्रत्याख्यानी असंख्यगुणा और उनसे अप्रत्याख्यानी असंख्यगुणा हैं । भगवन् ! इन मूलगुणप्रत्याख्यानी आदि जीवों में मनुष्य कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! मूलगुणप्रत्याख्यानी मनुष्य सबसे थोड़े, उनसे उत्तरगुणप्रत्याख्यानी संख्यातगुणा और उनसे अप्रत्याख्यानी मनुष्य असंख्यातगुणा हैं।
भगवन् ! क्या जीव सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव (समुच्चय में) सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं । भगवन् नैरयिक जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है । गौतम ! नैरयिक जीव न तो सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं और न ही देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, वे अप्रत्याख्यानी हैं । इसी तरह चतुरिन्द्रियपर्यन्त कहना चाहिए । पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है । गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंच सर्वमूलगुणप्रत्याख्यानी नहीं हैं, देशमूलगुणप्रत्याख्यानी हैं और अप्रत्याख्यानी भी हैं । मनुष्यों के विषय में (औघिक) जीवों की तरह कथन करना चाहिए । वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिकों की तरह कहना चाहिए।
भगवन् ! इन सर्वमूलप्रत्याख्यानी, देशमूलप्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! सबसे थोडे सर्वमूलप्रत्याख्यानी जीव हैं, उनसे असंख्यातगुणे देशमूलप्रत्याख्यानी जीव हैं
और अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं । इसी प्रकार तीनों-औधिक जीवों, पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों का अल्पबहुत्व प्रथम दण्डकमें कहे अनुसार कहना; किन्तु इतना विशेष है कि देशमूलगुणप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच सबसे थोड़े हैं और अप्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच उनसे असंख्येयगुणे हैं । भगवन् ! जीव क्या सर्व-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं, देश-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! जीव तीनों प्रकार के हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यंचों और मनष्यों का कथन भी इसी तरह करना चाहिए । वैमानिकपर्यन्त शेष सभी जीव अप्रत्याख्यानी हैं।
भगवन् ! इन सर्वोत्तरगुणप्रत्याख्यानी, देशोत्तरगुणप्रत्याख्यानी एवं अप्रत्याख्यानी जीवों में से कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ? गौतम ! इन तीनों का अल्पबहुत्व प्रथम दण्डक में कहे अनुसार यावत् मनुष्यों तक जान लेना चाहिए।
भगवन् ! क्या जीव संयत है, असंयत है, अथवा संयतासंयत है? गौतम ! जीव संयत भी है, असंयत भी है और संयतासंयत भी हैं । इस तरह प्रज्ञापनासूत्र के ३२वे पद में कहे अनुसार यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए और अल्पबहत्व भी तीनों का पूर्ववत् कहना चाहिए । भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं, अथवा प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी हैं ? गौतम ! तीनों प्रकार के हैं । इसी प्रकार मनुष्य भी तीनों ही प्रकार के हैं । पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव प्रारम्भ के विकल्प से रहित हैं, वे अप्रत्याख्यानी हैं या प्रत्याख्याना-प्रत्याख्यानी हैं । शेष सभी
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 133