________________
आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1'
शतक/ शतकशतक/उद्देशक/ सूत्रांक भगवन् ! ज्ञानावरणीय (आदि) कर्म को क्या साकारोपयोग वाला बाँधता है या अनाकारोपयोग वाला बाँधता है ? गौतम ! भजना से (आठों कर्म-प्रकृतियों) बाँधते हैं।
भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीयकर्म आहारक जीव बाँधता है या अनाहारक जीव बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को दोनों जीव भजना से बाँधते हैं । इसी प्रकार वेदनीय और आयुष्यकर्म को छोड़कर शेष छहों कर्मप्रकृतियों के विषय में समझ लेना चाहिए । आहारक जीव वेदनीय कर्म को बाँधता है, अनाहारक के लिए भजना है आयुष्यकर्म को आहारक के लिए भजना है; अनाहारक नहीं बाँधता ।
भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को क्या सूक्ष्म जीव बाँधता है, बादर जीव बाँधता है, अथवा नोसूक्ष्म-नोबादर जीव बाँधता है ? गौतम ! ज्ञानावरणीयकर्म को सूक्ष्मजीव बाँधता है, बादर जीव भजना से बाँधता है, किन्तु नोसूक्ष्मनोबादर जीव नहीं बाँधता । इसी प्रकार आयुष्यकर्म को छोडकर शेष सातों कर्म-प्रकृतियों के विषय में कहना चाहिए। आयुष्यकर्म को सूक्ष्म और बादरजीव भजना से बाँधते, नोसूक्ष्म-नोबादर जीव नहीं बाँधता । भगवन् ! क्या ज्ञानावरणीय (आदि) कर्म को चरमजीव बाँधता है, अथवा अचरमजीव बाँधता है ? गौतम ! दोनों प्रकार के जीव, आठों कर्मप्रकृतियों को भजना से बाँधते हैं। सूत्र - २८५
हे भगवन् ! स्त्रीवेदक, पुरुषवेदक, नपुंसकवेदक और अवेदक; इन जीवों में से कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक है ? गौतम ! सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदक हैं, उनसे संख्येयगुणा स्त्रीवेदक जीव हैं, उनसे अनन्तगुणा अवेदक हैं और उनसे भी अनन्तगुणा नपुंसकवेदक हैं । इन सर्व पदों का यावत् सबसे थोड़े अचरम जीव हैं और उनसे चरमजीव अनन्तगुणा हैं पर्यन्त अल्पबहुत्व कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है।
शतक-६- उद्देशक-४ सूत्र-२८६
भगवन ! क्या जीव कालादेश से सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! कालादेश से जीव नियमतः सप्रदेश हैं। भगवन ! क्या नैरयिक जीव कालादेश से सप्रदेश है या अप्रदेश हैं ? गौतम ! एक नैरयिक जीव कालादेश से कदाचित सप्रदेश है और कदाचित् अप्रदेश है। इस प्रकार यावत् एक सिद्ध-जीव-पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! कालादेश की अपेक्षा बहुत जीव सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! अनेक जीव कालादेश की अपेक्षा नियमतः सप्रदेश हैं । भगवन् ! नैरयिक जीव कालादेश की अपेक्षा क्या सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! १. सभी (नैरयिक) सप्रदेश हैं, २. बहुत-से सप्रदेश और एक अप्रदेश है, और ३. बहुत-से और बहुत-से अप्रदेश हैं । इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए।
भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सप्रदेश हैं या अप्रदेश हैं ? गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव सप्रदेश भी है, अप्रदेश भी हैं । इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक कहना चाहिए । नैरयिक जीवों के समान सिद्धपर्यन्त शेष सभी जीवों के लिए कहना चाहिए।
जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर शेष सभी आहारक जीवों के लिए तीन भंग कहने चाहिए, यथा-(१) सभी प्रदेश, (२) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश और (३) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । अनाहारक जीवों के लिए एकेन्द्रिय को छोडकर छह भंग इस प्रकार कहने चाहिए, यथा-(१) सभी सप्रदेश, (२) सभी अप्रदेश, (३) एक सप्रदेश और एक अप्रदेश, (४) एक सप्रदेश और बहुत अप्रदेश, (५) बहुत सप्रदेश और एक अप्रदेश और (६) बहुत सप्रदेश और बहुत अप्रदेश । सिद्धों के लिए तीन भंग कहने चाहिए।
भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीवों के लिए औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए । नौभवसिद्धिकनोअभवसिद्धिक जीव और सिद्धों में (पूर्ववत्) तीन भंग कहने चाहिए।
संज्ञी जीवोंमें जीव आदि तीन भंग कहने चाहिए । असंज्ञी जीवोंमें एकेन्द्रिय को छोड़कर तीन भंग कहना । नैरयिक, देव और मनुष्योंमें छ भंग कहने चाहिए । नोसंज्ञी-नोअसंज्ञी जीव, मनुष्य और सिद्धों में तीन भंग कहना ।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
Page 116