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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक क्षेत्रादेश से सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य आदि उसी तरह हैं, कालादेश तथा भावादेश से भी उसी प्रकार हैं।
इस पर निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से इस प्रकार प्रतिप्रश्न किया-हे आर्य ! तुम्हारे मतानुसार द्रव्यादेश से सभी पुद्गल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो क्या तुम्हारे मतानुसार परमाणुपुद्गल भी इसी प्रकार सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, किन्तु अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं ? और हे आर्य ! क्षेत्रादेश से भी यदि सभी पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं तो तुम्हारे मतानुसार एकप्रदेशावगाढ़ पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होने चाहिए। और फिर हे आर्य ! यदि कालादेश से भी समस्त पुद्गल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तुम्हारे मतानुसार एक समय की स्थिति वाला पुद्गल भी सार्द्ध, समध्य एवं सप्रदेश होना चाहिए । इसी प्रकार भावादेश से भी हे आर्य! सभी पुद्गल यदि सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, तो तदनुसार एकगुण काला पुद्गल भी तुम्हें सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश मानना चाहिए । यदि आपके मतानुसार ऐसा नहीं है, तो फिर आपने जो यह कहा था कि द्रव्यादेश से भी सभी पुदगल सार्द्ध, समध्य और सप्रदेश हैं, क्षेत्रादेश से भी उसी तरह हैं, कालादेश से और भावादेश से भी उसी तरह हैं, किन्तु वे अनर्द्ध, अमध्य और अप्रदेश नहीं हैं, इस प्रकार का आपका यह कथन मिथ्या हो जाता है। तब नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार से कहा- हे देवानुप्रिय! निश्चय ही हम इस अर्थ को नहीं जानते-देखते । हे देवानुप्रिय! यदि आपको इस अर्थ के परिकथन में किसी प्रकार की ग्लानि न हो तो मैं आप देवानप्रिय से इस अर्थ को सुनकर, अवधारणपूर्वक जानना चाहता हूँ।
इस पर निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार ने नारदपुत्र अनगार से कहा-हे आर्य ! मेरी धारणानुसार द्रव्यादेश से पुद्गल सप्रदेश भी हैं, अप्रदेश भी हैं, और वे पुद्गल अनन्त हैं । क्षेत्रादेश से भी इसी तरह हैं, और कालादेश से तथा भावादेश से भी वे इसी तरह हैं । जो पुद्गल द्रव्यादेश से अप्रदेश हैं, वे क्षेत्रादेश से भी नियमतः अप्रदेश हैं । कालादेश से उनमें से कोई सप्रदेश होते हैं, कोई अप्रदेश होते हैं और भावादेश से भी कोई सप्रदेश तथा कोई अप्रदेश होते हैं । जो पुद्गल क्षेत्रादेश से अप्रदेश होते हैं, उनमें कोई द्रव्यादेश से सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं, कालादेश और भावादेश से इसी प्रकार की भजना जाननी चाहिए । जिस प्रकार क्षेत्र से कहा, उसी प्रकार काल से और भाव से भी कहना चाहिए। जो पुद्गल द्रव्य से सप्रदेश होते हैं, वे क्षेत्र से कोई सप्रदेश और कोई अप्रदेश होते हैं; इसी प्रकार काल से
और भाव से भी वे सप्रदेश और अप्रदेश समझ लेने चाहिए । जो पुद्गल क्षेत्र से सप्रदेश होते हैं; वे द्रव्य से नियमतः सप्रदेश होते हैं, किन्तु काल से तथा भाव से भजना से जानना चाहिए। जैसे द्रव्य से कहा, वैसे ही काल से और भाव से भी कथन करना।
हे भगवन् ! (निर्ग्रन्थीपुत्र!) द्रव्यादेश से, क्षेत्रादेश से, कालादेश से और भावादेश से, सप्रदेश और अप्रदेश पुद् गलों में कौन किनसे कम, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ? हे नारदपुत्र ! भावादेश से अप्रदेश पुद्गल सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा कालादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं; उनकी अपेक्षा द्रव्यादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं और उनकी अपेक्षा भी क्षेत्रादेश से अप्रदेश पुद्गल असंख्येयगुणा हैं । उनसे क्षेत्रादेश से सप्रदेश पुद् गल असंख्यातगुणा हैं, उनसे द्रव्यादेश से सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं, उनसे कालादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं और उनसे भी भावादेशेन सप्रदेश पुद्गल विशेषाधिक हैं । इसके पश्चात् नारदपुत्र अनगार ने निर्ग्रन्थीपुत्र अनगार को वन्दन-नमस्कार किया । उनसे सम्यक् विनयपूर्वक बार-बार उन्होंने क्षमायाचना की । क्षमायाचना करके वे संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे। सूत्र-२६३
'भगवन् !' यों कहकर भगवान गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान महावीर स्वामी से यावत् इस प्रकार पूछाभगवन् ! क्या जीव बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! जीव न बढ़ते हैं, न घटते हैं, पर अवस्थित रहते हैं
वन् ! क्या नैरयिक बढ़ते हैं, अथवा अवस्थित रहते हैं ? गौतम ! नैरयिक बढ़ते भी हैं, घटते भी हैं और अवस्थित भी रहते हैं । जिस प्रकार नैरयिकों के विषय में कहा, इसी प्रकार वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए।
भगवन् ! सिद्धों के विषय में मेरी पृच्छा है (कि वे बढ़ते हैं, घटते हैं या अवस्थित रहते हैं ?) गौतम! सिद्ध बढ़ते
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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