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आगम सूत्र ५, अंगसूत्र-५, 'भगवती/व्याख्याप्रज्ञप्ति-1' शतक/ शतकशतक /उद्देशक/ सूत्रांक राजपिण्ड तक पूर्ववत् यावत् अनाराधना एवं आराधना जान लेनी चाहिए । 'आधाकर्म अनवद्य है, इस प्रकार जो साधु बहुत-से लोगों के बीच में प्ररूपण (प्रज्ञापन) करता है, उसके भी यावत् आराधना नहीं होती, तथा वह यावत् आलोचना-प्रतिक्रमण करके काल करता है, उसके आराधना होती है । इसी प्रकार क्रीतकृत से लेकर यावत् राजपिण्ड तक पूर्वोक्त प्रकार से अनाराधना होती है, तथा यावत् आराधना होती है। सूत्र-२५१
भगवन् ! अपने विषय में गण को अग्लान (अखेद) भाव से स्वीकार करते (अर्थात्-सूत्रार्थ पढ़ाते) हुए तथा अग्लानभाव से उन्हें सहायता करते हुए आचार्य और उपाध्याय, कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! कितने ही आचार्य-उपाध्याय उसी भव से सिद्ध होते हैं, कितने ही दो भव ग्रहण करके सिद्ध होते हैं, किन्तु तीसरे भव का अतिक्रमण नहीं करते। सूत्र - २५२
भगवन ! जो दूसरे पर सदभूत का अपलाप और असदभूत का आरोप करके असत्य मिथ्यादोषारोपण करता है, उसे किस प्रकार के कर्म बंधते हैं ? गौतम ! जो दूसरे पर सद्भूत का अपलाप और असद्भूत का आरोपण करके मिथ्या दोष लगाता है, उसके उसी प्रकार के कर्म बंधते हैं । वह जिस योनि में जाता है, वहीं उन कर्मों को वेदता है और वेदन करने के पश्चात उनकी निर्जरा करता है। हे भगवन ! यह इसी प्रकार है।
शतक-५ - उद्देशक-७ सूत्र - २५३
भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल काँपता है, विशेष रूप से काँपता है ? यावत् उस-उस भाव में परिणत होता है? गौतम! परमाणु पुद्गल कदाचित् काँपता है, विशेष काँपता है, यावत् उस-उस भाव में परिणत होता है, कदाचित् नहीं काँपता, यावत् उस-उस भाव में परिणत नहीं होता । भगवन् ! क्या द्विप्रदेशिक स्कन्ध काँपता है, विशेष काँपता है, यावत् उस-उस भाव में परिणत होता है ? हे गौतम ! कदाचित् कम्पित होता है, यावत् परिणत होता है, कदाचित् कम्पित नहीं होता, यावत् परिणत नहीं होता । कदाचित् एक देश से कम्पित होता है, एक देश से कम्पित नहीं होता। भगवन् ! क्या त्रिप्रदेशिक स्कन्ध कम्पित होता है, यावत् परिणत होता है ? गौतम ! कदाचित् कम्पित होता है, कदाचित् कम्पित नहीं होता; कदाचित् एक देश से कम्पित होता है, और एक देश से कम्पित नहीं होता; कदाचित् एक देश से कम्पित होता है, और बहुत देशों से कम्पित नहीं होता; कदाचित् बहत देशों से कम्पित होता है और एक देश से कम्पित नहीं होता।
भगवन् ! क्या चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध कम्पित होता है ? गौतम ! कदाचित् कम्पित होता है, कदाचित् कम्पित नहीं होता; कदाचित् उसका एकदेश कम्पित होता है, कदाचित् एकदेश कम्पित नहीं होता; कदाचित् एक देश कम्पित होता है, और बहुत देश कम्पित नहीं होते; कदाचित् बहुत देश कम्पित होते हैं और एक देश कम्पित नहीं होता; कदाचित् बहत देश कम्पित होते हैं और बहत देश कम्पित नहीं होते । जिस प्रकार चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार पंचप्रदेशी स्कन्ध यावत् अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक कहना। सूत्र - २५४
भगवन् ! क्या परमाणु पुद्गल तलवार की धार या उस्तरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है ? हाँ, गौतम! वह अवगाहन करके रह सकता है।
भगवन् ! उस धार पर अवगाहित होकर रहा हुआ परमाणुपुद्गल छिन्न या भिन्न हो जाता है ? गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । परमाणुपुद्गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता । इसी तरह यावत् असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना चाहिए । भगवन् ! क्या अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तलवार की धार पर या क्षुरधार पर अवगाहन करके रह सकता है ? हाँ, गौतम ! वह रह सकता है। भगवन् ! क्या तलवार की धार को या क्षुरधार को अवगाहित करके रहा हुआ अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है ? हे गौतम ! कोई अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है,
मुनि दीपरत्नसागर कृत् "(भगवती) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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