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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र-४, 'समवाय'
समवाय/ सूत्रांक मारणान्तिक-आराधना-मरने के समय संलेखना-पूर्वक ज्ञान-दर्शन, चारित्र और तप की विशिष्ट आराधना करे । यह बत्रीस योग संग्रह हैं। सूत्र-१०८
बत्तीस देवेन्द्र कहे गए हैं । जैसे-१. चमर, २. बली, ३. धरण, ४. भूतानन्द, यावत् (५. वेणुदेव, ६. वेणुदाली ७. हरिकान्त, ८. हरिस्सह, ९. अग्निशिख, १०. अग्निमाणव, ११. पूर्ण, १२. वशिष्ठ, १३. जलकान्त, १४. जलप्रभ, १५. अमितगति, १६. अमितवाहन, १७. वैलम्ब, १८. प्रभंजन) १९. घोष, २०. महाघोष, २१. चन्द्र, २२.
सूर्य,
२३. शक्र, २४. ईशान, २५. सनत्कुमार, यावत् (२६. माहेन्द्र, २७. ब्रह्म, २८. लान्तक, २९. शुक्र, ३०. सहस्रार) ३१. प्रणत, ३२. अच्युत ।
कुन्थु अर्हत् के बत्तीस अधिक बत्तीस सौ (३२३२) केवलि जिन थे।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति बत्तीस पल्योपम कही गई है। अधस्तन सातवी पृथ्वी में कितनेक नारकियों की स्थिति बत्तीस सागरोपम कही गई है । कितनेक असुरकुमार देवों की स्थिति बत्तीस पल्योपम कही गई है।
सौधर्म-ईशान कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति बत्तीस पल्योपम है।।
जो देव विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित विमानों में देव रूप से उत्पन्न होते हैं, उनमें से कितनेक देवों की स्थिति बत्तीस सागरोपम है। वे देव सोलह मासों के बाद आन-प्राण या उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के बत्तीस हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है।
कितनेक भव्यसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो बत्तीस भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व कर्मों का अन्त करेंगे।
समवाय-३२ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत्' (समवाय) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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