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आगम सूत्र ४, अंगसूत्र- ४, 'समवाय '
सूत्र
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समवाय-६
समवाय / सूत्रांक
छह लेश्याएं कही गई हैं । जैसे - कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजोलेश्या, पद्म लेश्या, शुक्ल
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लेश्या ।
(संसारी) जीवों के छह निकाय कहे गए हैं । पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और त्रसकाय । छह प्रकार के बाहिरी तपःकर्म हैं । अनशन, ऊनोदर्य, वृत्तिसंक्षेप, रसपरित्याग, कायक्लेश और संलीनता । छह प्रकार के आभ्यन्तर तप हैं । प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ।
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छह छाद्मस्थिक समुद्घात कहे गए हैं । जैसे - वेदना समुद्घात कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात, वैक्रिय समुद्घात, तैजस समुद्घात और आहारक-समुद्घात ।
अर्थावग्रह छह प्रकार का कहा गया है । जैसे श्रोत्रेन्द्रिय-अर्थावग्रह, चक्षुरिन्द्रिय-अर्थावग्रह, घ्राणेन्द्रियअर्थावग्रह, जिह्वेन्द्रिय-अर्थावग्रह, स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रह और नोइन्द्रिय-अर्थावग्रह ।
कृत्तिका नक्षत्र छह तारा वाला है । आश्लेषा नक्षत्र तारा वाला है ।
इस रत्नप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है। तीसरी वालुकाप्रभा पृथ्वी में कितनेक नारकों की स्थिति छह सागरोपम कही गई है। कितनेक असुर कुमारों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है। सौधर्म-ईशान कल्पों में कितने देवों की स्थिति छह पल्योपम कही गई है ।
सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों में कितनेक देवों की स्थिति छह सागरोपम है । उनमें जो देव स्वयम्भू, स्वयम्भूरमण, घोष, सुघोष, महाघोष, कृष्टिघो, वीर, सुवीर, वीरगत, वीर-श्रेणिक, वीरावर्त, वीरप्रभ, वीरकांत, वीरवर्ण, वीरलेश्य, वीरध्वज, वीरशृंग, वीरसृष्ट, वीरकूट और वीरोत्तरावतंसक नाम के विशिष्ट विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं, उन देवों की उत्कृष्ट स्थिति छह सागरोपम कही गई है । वे देव तीन मासों के बाद आन-प्राण उच्छ्वास-निःश्वास लेते हैं । उन देवों के छह हजार वर्षों के बाद आहार की ईच्छा उत्पन्न होती है ।
कितनेक भवसिद्धिक जीव ऐसे हैं जो छह भव ग्रहण करके सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, कर्मों से मुक्त होंगे, परम निर्वाण को प्राप्त होंगे और सर्व दुःखों का अन्त करेंगे ।
समवाय-६ का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (समवाय)" आगमसूत्र - हिन्द-अनुवाद”
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