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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-४६८ पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा न करने वालों के पाँच प्रकार का संयम होता है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय संयम यावत् स्पर्शेन्द्रिय संयम | पंचेन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वालों के पाँच प्रकार का असंयम होता है, यथा-श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय असंयम। सभी प्राण, भूत, सत्त्व और जीवों की हिंसा न करने वालों के पाँच प्रकार का संयम होता है, यथा-एके-न्द्रिय संयम यावत् पंचेन्द्रिय संयम । सभी प्राण, भूत, सत्त्व और जीवों की हिंसा करने वालों के पाँच प्रकार का असंयम होता है, यथा-एकेन्द्रिय असंयम-यावत् पंचेन्द्रिय असंयम । सूत्र-४६९ तृण वनस्पति कायिक जीव पाँच प्रकार के हैं, यथा-अग्रबीज, मूलबीज, पर्वबीज, स्कन्धबीज, बीजरुह । सूत्र -४७० आचार पाँच प्रकार का है, यथा-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार, वीर्याचार । सूत्र-४७१ आचार प्रकल्प पाँच प्रकार का है, यथा-मासिक उद्घातिक-लघुमास, मासिक अनुद्घातिक-गुरुमास, चातुर्मासिक उद्घातिक-लघु चौमासी, चातुर्मासिक अनुद्घातिक-गुरु चौमासी, आरोपणा-प्रायश्चित्त में वृद्धि करना। आरोपणा पाँच प्रकार की है, यथा-प्रस्थापिता-आरोपणा करने के गुरुमास आदि प्रायश्चित्त रूप तपश्चर्या का प्रारम्भ करना । स्थापिता-गुरुजनों की वैयावृत्य करने के लिए आरोपित प्रायश्चित्त के अनुसार भविष्य में तपश्चर्या करना । कृत्स्ना-वर्तमान जिनशासन में उत्कृष्ट तप मास का माना गया है अतः इससे अधिक प्रायश्चित्त न देना । अकृत्स्ना-यदि दोष के अनुसार प्रायश्चित्त देने पर छ: मास से अधिक प्रायश्चित्त आता हो तथापि छ: मास का ही प्रायश्चित्त देना । हाडहडा-लघुमास आदि प्रायश्चित्त शीघ्रतापूर्वक देना। सूत्र - ४७२ जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के उत्तर में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-माल्यवंत, चित्रकूट, पद्मकूट, नलिनकूट, एक शैल । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पूर्व में सीता महानदी के दक्षिण में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-त्रिकूट, वैश्रमणकूट, अंजन, मातंजन, सोमनस । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम में सीता महानदी के दक्षिण में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं । यथा-विद्युत्प्रभ, अंकावती, पद्मावती, आशिविष, सुखावह । जम्बू-द्वीप में मेरु पर्वत के पश्चिम में सीता महानदी के उत्तर में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं, यथा-चन्द्रपर्वत, सूर्यपर्वत, नाग-पर्वत, देवपर्वत, गंधमादनपर्वत। जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में देव कुरुक्षेत्र में पाँच महाद्रह हैं, यथा-निषधद्रह, देवकुरुद्रह, सूर्यद्रह, सुलहद्रह, विद्युत्प्रभद्रह । जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत के दक्षिण में उत्तर कुरुक्षेत्र में पाँच महाद्रह हैं, नीलवंतद्रह, उत्तर कुरुद्रह, चन्द्रद्रह, एरावणद्रह, माल्यवंतद्रह । सीता महानदी की ओर तथा मेरु पर्वत की ओर सभी वक्षस्कार पर्वत ५०० योजन ऊंचे हैं, और ५०० गाऊ भूमि में गहरे हैं । धातकीखण्ड के पूर्वार्ध में मेरु पर्वत के पूर्व में, सीता महानदी के उत्तर में पाँच वक्षस्कार पर्वत हैं। (जम्बूद्वीप के समान), धातकीखण्ड के पश्चिमार्ध में (जम्बूद्वीप के समान), पुष्करवरद्वीपार्ध के पश्चिमार्ध भी जम्बूद्वीप के समान वक्षस्कार पर्वत और द्रहों की ऊंचाई आदि कहनी चाहिए। समय क्षेत्र में पाँच भरत, पाँच ऐरवत यावत् पाँच मेरु और पाँच मेरु चूलिकाएं हैं। सूत्र - ४७३ कौशलिक अर्हन्त ऋषभदेव पाँच सौ धनुष के ऊंचे थे । चक्रवर्ती महाराजा भरत पाँच सौ धनुष ऊंचे थे । बाहुबली अणगार भी इतने ही ऊंचे थे । ब्राह्मी नाम की आर्या पाँच सौ धनुष ऊंची थी । सुन्दरी नाम की आर्या भी इतनी ही ऊंची थी। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 97
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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