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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-४४४ ___ पाँच प्रकार के हेतु कहे गए हैं, यथा-अनुमान प्रमाण के अंग घूमादि हेतु को जानता नहीं है, अनुमान प्रमाण के अंग देखता नहीं है, अनुमान प्रमाण के अंग घूमादि हेतु पर श्रद्धा नहीं करता है । अनुमान प्रमाण के अंग घूमादि हेतु को प्राप्त नहीं करता है । अनुमान प्रमाण के अंग जाने बिना अज्ञान मरण मरता है। पाँच प्रकार के हेतु कहे गए हैं, यथा-हेतु से जानता नहीं है, यावत् हेतु से अज्ञान मरण करता है । पाँच प्रकार के हेतु कहे गए हैं, यथा-हेतु से जानता है, यावत् हेतु से छद्मस्थ मरण मरता है। ____ पाँच हेतु कहे गए हैं, हेतु से जानता है, यावत् हेतु से छद्मस्थ मरण मरता है। पाँच अहेतु कहे गए हैं, यथा-अहेतु को नहीं जानता है, यावत् अहेतु रूप छद्मस्थ मरण मरता है । पाँच अहेतु कहे गए हैं, यथा-अहेतु से नहीं जानता है, यावत् अहेतु से छद्मस्थ मरण मरता है । पाँच अहेतु कहे गए हैं, यथा-अहेतु को जानता है यावत् अहेतु रूप केवलीमरण मरता है । पाँच अहेतु कहे गए हैं, यथा-अहेतु से जानता है, यावत् अहेतु से केवलीमरण मरता है। पाँच गुण केवली के अनुत्तर (श्रेष्ठ) कहे गए हैं, यथा-अनुत्तर ज्ञान, अनुत्तर दर्शन, अनुत्तर चारित्र, अनुत्तर तप, अनुत्तर वीर्य। सूत्र - ४४५ पद्मप्रभ अर्हन्त के पाँच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए हैं, यथा-चित्रा नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । चित्रा नक्षत्र में जन्म हुआ । चित्रा नक्षत्र में प्रव्रजित हुए । चित्रा नक्षत्र में अनंत, अनुत्तर, निर्व्याघात, पूर्ण, प्रतिपूर्ण केवल ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ। चित्रा नक्षत्र में निर्वाण प्राप्त हुए। पुष्पदन्त अर्हन्त के पाँच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए, यथा-मूल नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । मूल नक्षत्र में जन्म यावत् निर्वाण कल्याणक हुआ। सूत्र -४४६ पद्मप्रभ अर्हन्त के पाँच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए । पुष्पदन्त अर्हन्त के पाँच कल्याणक मूल नक्षत्र में हुए । शीतल अर्हन्त के पाँच कल्याणक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुए । विमल अर्हन्त के पाँच कल्याणक उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुए सूत्र-४४७ ___अनन्त अर्हन्त के पाँच कल्याणक रेवति नक्षत्र में हुए । धर्मनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक पुष्य नक्षत्र में हुए शांतिनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक भरणी नक्षत्र में हुए । कुन्थुनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए। अरनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक रेवति नक्षत्र में हुए। सूत्र - ४४८ मुनिसुव्रत अर्हन्त के पाँच कल्याणक श्रवण नक्षत्र में हुए । नमि अर्हन्त के पाँच कल्याणक अश्विनी नक्षत्र में हुए । नेमिनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक चित्रा नक्षत्र में हुए । पार्श्वनाथ अर्हन्त के पाँच कल्याणक विशाखा नक्षत्र में हुए । महावीर के पाँच कल्याणक हस्तोत्तरा (चित्रा) नक्षत्र में हुए। सूत्र - ४४९ श्रमण भगवान महावीर के पाँच कल्याणक हस्तोत्तरा नक्षत्र में हुए । महावीर हस्तोत्तरा नक्षत्र में देवलोक से च्यवकर गर्भ में उत्पन्न हुए । हस्तोत्तरा नक्षत्र में देवानन्दा के गर्भ से त्रिशला के गर्भ में आए । हस्तोत्तरा नक्षत्र में जन्म हुआ । हस्तोत्तरा नक्षत्र में दीक्षित हुए और हस्तोत्तरा नक्षत्र में केवलज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ। स्थान-५- उद्देशक-२ सूत्र-४५० निर्ग्रन्थ और निग्रन्थियों को ये पाँच महानदियाँ एक मास में या दो या तीन बार-तैरकर पार करना या नौका द्वारा पार करना नहीं कल्पता है । यथा-गंगा, यमुना, सरयू, ऐरावती, मही । पाँच कारणों से पार करना कल्पता है, मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 93
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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