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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-४०५ वाद्य चार प्रकार के हैं । यथा-तत (वीणा आदि), वितत (ढोल आदि), धन (कांस्यताल आदि) और शुषिर (बांसुरी आदि)। नाट्य (नाटक) चार प्रकार के हैं । यथा-ठहर-ठहर कर नाचना । संगीत के साथ नाचना । संकेतों से भावअभिव्यक्ति करते हुए नाचना । झूककर या लेटकर नाचना । गायन चार प्रकार का है । यथा-नाचते हुए गायन करना । छंद (पद्य) गायन । मंद-मंद स्वर से गायन करना। शनैः शनैः स्वर को तेज करते हुए गायन करना। पुष्प रचना चार प्रकार की है । यथा-सूत के धागे से गूंथकर की जाने वाली पुष्प रचना । चारों ओर पुष्प बीटकर की जाने वाली रचना । पुष्प आरोपित करके की जाने वाली रचना । परस्पर पुष्प नाल मिलाकर की जाने वाली रचना। अलंकार रचना चार प्रकार की है । केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार, आभरणालंकार। अभिनय चार प्रकार का है । यथा-किसी घटना का अभिनय करना । महाभारत का अभिनय करना । राजा मन्त्री आदि का अभिनय करना । मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाओं का अभिनय करना। सूत्र - ४०६ सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प में चार वर्ण के विमान हैं । यथा-नीले, रक्त, पीत और श्वेत । महाशुक्र और सहस्रारकल्प में देवताओं के शरीर चार हाथ के ऊंचे हैं। सूत्र-४०७ पानी के गर्भ चार प्रकार के हैं । ओस, धुंवर, अतिशीत, अतिगरम । पानी के गर्भ चार प्रकार के हैं । यथा-हिमपात । बादल से आकाश का आच्छादित होना । अतिशीत या अतिगरमी होना । वायु, बद्दल, गाज, बीजली और बरसना इन पाँचों का संयुक्त रूप से होना। सूत्र-४०८ माघ मास में हिमपात से, फाल्गुन मास में बादलों से, चैत्र मास में अधिक शीत से और वैशाख में ऊपर कहे संयुक्त पाँच प्रकार से पानी का गर्भ स्थिर होता है। सूत्र - ४०९ मनुष्यणी (स्त्री) के गर्भ चार प्रकार के है । यथा-स्त्री रूपमें, पुरुष रूपमें, नपुंसकरूप में और बिंब रूपमें। सूत्र-४१० अल्प शुक्र और अधिक ओज का मिश्रण होने से गर्भ स्त्री रूप में उत्पन्न होता है । अल्पओज और अधिक शुक्र मिश्रण होने से गर्भ पुरुष रूप में उत्पन्न होता है। सूत्र-४११ ओज और शुक्र के समान मिश्रण से गर्भ नपुंसक रूप में उत्पन्न होता है । स्त्री का स्त्री से सहवास होने पर गर्भ बिंब रूप में उत्पन्न होता है। सूत्र- ४१२ उत्पाद पूर्व के चार मूल वस्तु है। सूत्र-४१३ काव्य चार प्रकार है । यथा-गद्य, पद्य, कथ्य और गेय । सूत्र-४१४ नैरयिक जीवों के चार समुद्घात हैं । यथा-वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात और वैक्रिय समुद्घात । वायुकायिक जीवों के भी ये चार समुद्घात हैं। मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 86
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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