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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक देवकृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । यथा-उपहास करके उपसर्ग करता है । द्वेष करके उपसर्ग करता है । परीक्षा के बहाने उपसर्ग करता है । विविध प्रकार के उपसर्ग करता है । मनुष्य कृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । पूर्ववत् एवं मैथुन सेवन की ईच्छा से उपसर्ग करता है । तिर्यंच कृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । यथा -भयभीत होकर उपसर्ग करता है । द्वेष भाव से उपसर्ग करता है । आहार के लिए उपसर्ग करता है । स्वस्थान की रक्षा के लिए उपसर्ग करता है। आत्मकृत उपसर्ग चार प्रकार के हैं । यथा-संघट्टन से-आँख में पड़ी हुई रज आदि को नीकालने पर पीड़ा होती है। गिर पड़ने से । अधिक देर तक एक आसन से बैठने पर पीड़ा होती है। पैर संकुचित कर अधिक देर तक बैठने से पीड़ा होती है। सूत्र-३९३ कर्म चार प्रकार के हैं । यथा-एक कर्म प्रकृति शुभ है और उसका हेतु भी शुभ है । एक कर्म प्रकृति शुभ है किन्तु उसका हेतु अशुभ है । एक कर्म प्रकृति अशुभ है किन्तु उसका हेतु शुभ है । एक कर्म प्रकृति अशुभ है और उसका हेतु भी अशुभ है। ___ कर्म चार प्रकार के हैं । यथा-एक कर्म प्रकृति का बंध शुभ रूप में हुआ और उसका उदय भी शुभ रूप में हुआ । एक कर्म प्रकृति का बंध शुभ रूप में हुआ किन्तु संक्रमकरण से उसका उदय अशुभ रूप में हुआ । एक कर्म प्रकृति का बंध अशुभरूप में हुआ किन्तु संक्रमकरण से उसका उदय शुभ रूप में हुआ । एक कर्म प्रकृति का बंध अशुभ रूप में हुआ और उसका उदय भी अशुभ रूप में हुआ। कर्म चार प्रकार के हैं। प्रकृति कर्म, स्थिति कर्म, अनुभाव कर्म, प्रदेश कर्म । सूत्र-३९४ संघ चार प्रकार के हैं । यथा-श्रमण, श्रमणियाँ, श्रावक और श्राविकाएं। सूत्र-३९५ बुद्धि चार प्रकार की है। उत्पातिया, वैनयिकी, कार्मिकी, पारिणामिकी। मति चार प्रकार की है। यथा-अवग्रहमति, ईहामति, अवायमति और धारणामति । मति चार प्रकार की है। यथा-१. घड़े के पानी जैसी, २. नाले के पानी जैसी, ३. तालाब के पानी जैसी और ४. समुद्र के पानी जैसी। सूत्र - ३९६ संसारी जीव चार प्रकार के हैं । यथा-नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव । सभी जीव चार प्रकार के हैं । मनयोगी, वचनयोगी, काययोगी, अयोगी। सभी जीव चार प्रकार के हैं । यथा-स्त्री वेदी, पुरुष वेदी, नपुंसक वेदी और अवेदी। सभी जीव चार प्रकार के हैं । यथा-चक्षुदर्शन वाले, अचक्षुदर्शन वाले, अवधि दर्शन वाले, केवलदर्शन वाले सभी जीव चार प्रकार के हैं । संयत, असंयत, संयतासंयत, नोसंयत-नोअसंयत । सूत्र-३९७ पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष इहलोक का भी मित्र है और परलोक का भी मित्र है । एक पुरुष इहलोक का तो मित्र है किन्तु परलोक का मित्र नहीं है । एक पुरुष परलोक का तो मित्र है किन्तु इहलोक का मित्र नहीं है। एक पुरुष इहलोक का भी मित्र नहीं है और परलोक का भी मित्र नहीं है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष अन्तरंग मित्र है और बाह्य स्नेह भी पूर्ण मित्रता का है । एक पुरुष अन्तरंग मित्र तो है किन्तु बाह्य स्नेह प्रदर्शित नहीं करता है । एक पुरुष बाह्य स्नेह तो प्रदर्शित करता है किन्तु अन्तरंग में शत्रुभाव है। एक पुरुष अन्तरंग भी शत्रुभाव रखता है और बाह्य व्यवहार से भी शत्रु है। पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-एक पुरुष द्रव्य (बाह्य व्यवहार) से भी मुक्त है और भाव (आसक्ति) से भी मुक्त है। एक पुरुष द्रव्य से तो मुक्त है किन्तु भाव से मुक्त नहीं है । एक पुरुष भाव से तो मुक्त है किन्तु द्रव्य से मुक्त नहीं है मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 84
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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