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आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान'
स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३६
चरम शरीरों का मरण एक ही होता है। सूत्र-३७
पूर्ण शुद्ध तत्त्वज्ञ पात्र अथवा गुणप्रकर्ष प्राप्त केवली एक है। सूत्र-३८
स्वकृत कर्मफल से जीवों का दुःख एक सा है । सर्व भूत-जीव एक हैं। सूत्र-३९
जिसके सेवन से आत्मा को क्लेश प्राप्त होता है वह अधर्म प्रतिज्ञा एक है। सूत्र - ४०
जिस से आत्मा विशिष्ट ज्ञानादि पर्याय युक्त होता है वह धर्म प्रतिज्ञा एक है। सूत्र-४१
देव, असुर और मनुष्यों का एक समयमें मनोयोग एक ही होता है । वचनयोग, काययोग भी एक ही होता है। सूत्र-४२
देव, असुर और मनुष्यों के एक समय में एक ही उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पौरुष पराक्रम होता है। सूत्र-४३
ज्ञान एक है । दर्शन एक है। चारित्र एक है। सूत्र - ४४
समय एक है। सूत्र-४५
प्रदेश एक है । परमाणु एक है। सूत्र-४६
सिद्धि एक है, सिद्ध एक है। परिनिर्वाण एक है, परिनिर्वृत्त एक है। सूत्र-४७
शब्द एक है । रूप एक है । गंध एक है । रस एक है । स्पर्श एक है। शुभ शब्द एक है। अशुभ शब्द एक है। सुरूप एक है । कुरूप एक है । दीर्घ एक है । ह्रस्व एक है । वर्तुलाकार लड्डू के समान गोल एक है । त्रिकोण एक है। चतुष्कोण एक है । पृथुल-विस्तीर्ण एक है । परिमंडल-चूड़ो के समान गोल एक है।
काला एक है । नीला एक है । लाल एक है। पीला एक है । श्वेत एक है। सुगन्ध एक है। दुर्गन्ध एक है।
तिक्त एक है । कटुक एक है । कषाय एक है । अम्ल एक है । मधुर एक है। कर्कश-यावत्-रुक्ष एक है। सूत्र- ४८
प्राणातिपात (हिंसा) यावत्-परिग्रह एक है। क्रोध-यावत् लोभ एक है। राग एक है-यावत् परपरिवाद एक है। रति-अरति एक है। मायामृषा-कपटयुक्त झूठ एक है। मिथ्यादर्शन शल्य एक है। सूत्र - ४९
प्राणातिपात-विरमण एक है-यावत् परिग्रह-विरमण एक है।
क्रोध-त्याग एक है-यावत् मिथ्यादर्शन-शल्य-त्याग एक है। सूत्र-५०
अवसर्पिणी एक है । सुषमासुषमा एक है-यावत्-दुषमदुषमा एक है । उत्सर्पिणी एक है । दुषमदुषमा एक हैयावत्-सुषमसुषमा एक है।
मुनि दीपरत्नसागर कृत् - (स्थान) आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद"
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