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________________ आगम सूत्र ३, अंगसूत्र-३, 'स्थान' स्थान/उद्देश/सूत्रांक सूत्र-३१० तमस्काय के चार नाम हैं । यथा-तम, तमस्काय, अंधकार और महांधकार । तमस्काय के चार नाम हैंलोकांधकार, लोकतमस, देवांधकार और देवतमस । तमस्काय के चार नाम हैं, यथा-वातपरिध-वायु को रोकने के लिए अर्गला समान । वातपरिध क्षोभ-वायु को क्षुब्ध करने के लिए अर्गला समान । देवारण्य-देवताओं के छिपने का स्थान । देवव्यूह-जिस प्रकार मानव का सैन्यव्यूह में प्रवेश पाना कठिन है उसी प्रकार देवों का तमस्काय में प्रवेश पाना कठिन है । तमस्काय से चार कल्प ढके हुए हैं, यथा-सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार और माहेन्द्र। सूत्र - ३११ पुरुष चार प्रकार के हैं । यथा-संप्रगट प्रतिसेवी-साधु समुदाय में रहने वाला एक साधु अगीतार्थ के समक्ष दोष सेवन करते हैं । प्रच्छन्नप्रतिसेवी-एक साधु प्रच्छन्न दोष सेवन करता है। प्रत्युत्पन्न नंदी-एक साधु वस्त्र या शिष्य के लाभ से आनन्द मनाता है। निःसरण नंदी-एक साधु गच्छ में से स्वयं के या शिष्य के नीकलने से आनन्द मनाता है। सेनाएं चार प्रकार की हैं । यथा-एक सेना शत्रु को जीतने वाली है किन्तु हराने वाली नहीं है । एक सेना हराने वाली है किन्तु जीतने वाली नहीं है । एक सेना शत्रुओं को जीतने वाली भी है और हराने वाली भी है । एक सेना शत्रुओं को न जीतने वाली है और न हराने वाली । इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के हैं । यथा-एक साधु परीषहों को जीतने वाला है किन्तु परीषहों को सर्वथा परास्त करने वाला नहीं है । एक साधु परीषहों से हारने वाला है किन्तु उन्हें जीतने वाला नहीं है । एक साधु शैलक राजर्षि के समान परीषहों से हारने वाला भी है और उन्हें जीतने वाला भी है। एक साधु न परीषहों से हारने वाला है और न उन्हें जीतने वाला है । क्योंकि साधनाकाल में उसे परीषह आये ही नहीं। सेनाएं चार प्रकार की हैं । यथा-एक सेना युद्ध के आरम्भ में भी शत्रु सेना को जीतती है और युद्ध के अन्त में भी शत्रु सेना को जीतती है। एक सेना युद्ध के आरम्भ में शत्रु सेना को जीतती है किन्तु युद्ध के अन्त में पराजित हो जाती है । एक सेना युद्ध के आरम्भ में पराजित होती है किन्तु युद्ध के अन्त में विजय प्राप्त करती है । एक सेना युद्ध के आरम्भ में भी और अन्त में भी पराजित होती है । इसी प्रकार परीषहों से विजय और पराजय प्रकार करने वाले पुरुष वर्ग के चार भांगे हैं। सूत्र-३१२ वक्र वस्तुएं चार प्रकार की हैं । यथा-बाँस की जड़ समान वक्रता, घेटे के सींग समान वक्रता, गोमूत्रिका के समान वक्रता, बाँस की छाल समान वक्रता । इसी प्रकार माया भी चार प्रकार की है । बाँस की जड़ समान वक्रता वाली माया करनेवाला जीव मरकर नरकमें उत्पन्न होता है । घेटे के सींग समान वक्रता वाली माया करने वाला जीव मरकर तिर्यंचयोनि में उत्पन्न होता है । गोमूत्रिका के समान वक्रता वाली माया करने वाला जीव मरकर मनुष्ययोनि में जन्म लेता है । बाँस की छाल के समान वक्रता वाली माया करने वाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता है। स्तम्भ चार प्रकार का है। यथा-शैलस्तम्भ, अस्थिस्तम्भ, दारुस्तम्भ और तिनिसलतास्तम्भ । इसी प्रकार मान चार प्रकार का है । यथा-शैलस्तम्भ समान, अस्थिस्तम्भ समान, दारुस्तम्भ समान और तिनिसलतास्तम्भ समान । शैलस्तम्भ समान मान करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है । अस्थिस्तम्भ समान मान करने वाला जीव मरकर तिर्यंचयोनि में उत्पन्न होता है । दारुस्तम्भ समान मान करने वाला जीव मरकर मनुष्य योनि में उत्पन्न होता है। तिनिसलतास्तम्भ मान करने वाला जीव मरकर देवयोनि में उत्पन्न होता है। वस्त्र चार प्रकार के हैं । यथा-कृमिरंग से रंगा हुआ, कीचड़ से रंगा हुआ, खंजन से रंगा हुआ, हरिद्रा से रंगा हुआ । इसी प्रकार लोभ चार प्रकार का है । यथा-कृमिरंग से रंगे हुए वस्त्र के समान, कीचड़ से रंगे हुए वस्त्र के समान, खंजन से रंगे हुए वस्त्र के समान, हरिद्रा से रंगे हुए वस्त्र के समान । कृमिरंग से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करने वाला जीव मरकर नरक में उत्पन्न होता है। कीचड़ से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करने वाला जीव मरकर तिर्यंच में उत्पन्न होता है । खंजन से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करने वाला जीव मरकर मनुष्य में उत्पन्न होता है। हल्दी से रंगे हुए वस्त्र के समान लोभ करने वाला जीव मरकर देवताओं में उत्पन्न होता है। मुनि दीपरत्नसागर कृत् " (स्थान)- आगमसूत्र-हिन्द-अनुवाद" Page 60
SR No.034669
Book TitleAgam 03 Sthanang Sutra Hindi Anuwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDipratnasagar, Deepratnasagar
Publication Year2019
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Agam 03, & agam_sthanang
File Size4 MB
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